बस मे नाही नैन हमारे

खुले निहारे,बंद निहारे,बस मे नाही नैन हमारे।
तुम-सी मोहनी मूरत रच के, विधि ने अपने हाथ संवारे। 
केश ललित काले घुंघराले, पवन-वेग मे मतवाले। 
सागर की मौजो के जैसे, लेत लहरिया भर किलकारे।
नूर भरा निष्कलंक-स्वच्छ-जल सम, नैनो के 'मान-सरोवर' मे। 
रति-पनिहारिन जल भरती नित , निज यौवन की गागर मे। 
कोमल कपोल मुख कमाल की पांखें , भरी प्रेम संदेशो से। 
नित प्रभात मे कली चटकती,जिसकी मुस्कान के आदेशो से। 
यूँ तो आँखो मे अगणित बाते,पर लब पर आता जब जीवन का सुर। 
कभी चपल चिड़ियो का कलरव , कभी कोकला-कूक मधुर। 
जाने-अनजाने हिरनी ने , चाल तुम्हारी पाई है। 
सहज नही है रत्न जवानी,यहाँ बहुत महेंगाई है 
सम्मोहन का जादू डाला , मुझ बसंत के दीवाने पर। 
तितली-सी उड़ चली हवा मे,निष्फिकर चलाती अपने पर। 

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