प्रियतमा

चन्दन की खुसबू सी प्रिए तुम ;हवा में घुल के आती हो। 
लिए   बहारे    ऋतुराज   की   ;जग   में  घु ल जाती हो। 
सुध  आते  ही मधुर पलों की  ;रोम-रोम   झुमा    मेरा। 
पूनम की शीतल रजनी तुम  ;फागुन का हो पाक सवेरा।
याद तुम्हारी सावन की रिमझिम ;कभी बरसने लग जाती। 
चातक बना पुकारूँ तुमको  ;तुम  बादल   सी छा  जाती। 
कविओं की तुम कविता हो ; गायक   की  आवाज  प्रिये। 
तुम चित्रकार का चित्र अजब हो ;कीमत है   बेमोल प्रिये। 
यौवन  गागर  धरें  गुजरिया ;ज़रा सम्हल के चल प्यारी। 
व्यर्थ न छलका गागर का जल ;भींग रही  नाजुक  साड़ी। 
इस जल से ही हरा भरा है ; जग जीवन का सुन्दर उपवन।
माली  को  है  गंध    फूल   की ;भ्रमर   करे   अंत:स्यंदन

                                                             "परमानंद"           


         

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