वाणी में अमृत भर दे माँ

जीवन में इतना कर दे माँ ,वाणी में अमृत भर दे माँ  !
                  बीज डाले थे तूने जो रस के,उन बीजों को अंकुर कर दे माँ  !                 
वाणी में अमृत भर दे माँ !

नए पुष्पों की बगिया सुन्दर ,वाणी होवे   ज्ञान समुंदर !
हिन्द गुलिस्तां गुल खिल जाये ,इत्र सुगन्धित सात समुंदर !
नए फागुन का नया सवेरा ,भारतवर्ष  में कर दे माँ !
      वाणी में अमृत  भर दे माँ  !

माँ !बचपन को याद   दिला दे,असली  बचपन क्या है ! 
बाल - सुलभ सब खेल कहाँ गए ,क्यों नित सकुचाती त्रिज्या है ?
वो जल बरसा दे जिसमे ,कागज की किस्ती चल दे माँ !
                   वाणी में अमृत  भर दे माँ  !

क्यों है इतना शोर हो रहा है ,नहीं सुनाई कुछ देता !
नन्ही बेटी की मृदु वाणी को ,कुचल ज़माना क्यों देता ?
उस प्यारे -से भोलेपन का ,अब उजियारा कर दे माँ !
                  वाणी में अमृत  भर दे माँ  !  

चंचल पंछी उड़ते जाना ,आज खबर फैलाना है !
बिन करुणा रोती करुणा को ,करुणा से सहलाना है !
वीणा की इक तान छेड़ दे ,सुर का झरना झर दे माँ !
                 वाणी में अमृत  भर दे माँ  !
                                                         

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