वो मुरली की धुन

हमरे कान नहीं लग पाई ,वो मुरली की धुन कान्हां 
तेरे बिना   ओ श्याम हमारे मधुवन मधुवन ना लागे । 
पनघट भी है गगरी भी है पर जीवन कछु फीकौ लागै ।
सुन्दर गोपी प्यारी गैया, अरू गोपाला सबै बुलाबै ।
भाग अभाग  भए गगरी के कान्हां के कंकण  ना लागै ।
होरी आवै रंग उडै सब ,पर कान्हां से रंग कौन लगावै  ।
आज के रंग के भाग  कहाँ ,जो कान्हां के अंग को रंग पावै ।
यमुना के  जल को मुक्त किया,कालिया को मर्दन कर डारो ।
वही दशा भई आज कन्हैया यमुना पे निज चितवन डारो ।
करखानन के  नाग ने ,यमुना में फिर से विष डारो ।
कालिया-मर्दन फिर से कर जा ,ओ कान्हां तुम पुनः पधारो ।
कान्हां से ना रहे ग्वाला ,राधा सी गोपी नहीं पाई ।
पावन प्रेम पे दाग लगे अब  ,अरे कन्हैया करो सहाई । 
                                                           -परमानन्द 

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