माली

यह आलम इक गुलशन है ,हम सब बच्चे इसके फूल ।
वृहद् बगीचे के अनगिन माली ,श्रीहरी राखे हैं अनुकूल ।
हरी ने भीने पुष्प हैं बांटे ,किसी को सौंधे-सौंधे ।
हर माली को सौंप दिए है, कुछ-कुछ निश्चित पौधे।
किसी  के पौधे फूलें, नई उन्नत तकनीकों से ।
किसी के पौधे सूख रहे या ,मर जाते तकलीफों से ।
अधखिला फूल हूँ मैं बगिया का , मेरा माली मोहताज है ।
खाद पानी नसीब नहीं वहाँ , निर्धनता की मार है ।
जी-जान से अर्पित हुआ पुष्प पर , कष्टों से अंखिया मींचा है ।
खून का कतरा खाद में देता , अंसुवन का पानी सींचा है ।
उसके रक्त की हर एक बूँद से , मेरा पोषण होता है ।
हे हरि ! कर्म जो तुमने सौंपे ,श्रद्धा से माली ढोता है ।

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