प्रेम की मादकता
समीर 'समीर' को पत्र भयो ,मोहि मूक आमंत्रण प्रेम को डारो ।
मोहनी राग सुनो मम कान ,बुलाने पे जाने को मन कर डारो ।
घन केश भए अनुरागिन के,अरु बेल बनी तब चूनर सुन्दर ।
पादप झीने वस्त्र बने है , यौवन देह बिलोकहु अन्दर ।
प्रेमसुधा झरे आज झमाझम ,अलोकिक डोर से बाँध लियो है ।
मोहि बना के प्रेम दीवाना ,कुदरत कैसो खेल कियो है ।
या रस पी के प्यास बुझे ना ,पवन प्रेम को रस ऐसो है ।
स्वाद चखो इसका अब तुम भी ,हरि के प्रेम को रस कैसो है ।
राधा ने प्रेम की जोत जलाई ,पुंज प्रकाश को छोड़ दियो है ।
पुंज के उजियारे में मैंने , सार समंदर देख लियो है ।
प्रेम ही जग का सार है यारो ,प्रेम को आज स्वीकार कियो है ।
प्रेम निभाने जग में आये ,प्रेम लियो है प्रेम दियो है ।
प्रेम की मादकता भई ऐसे ,जग को आज भुलाय दियो है ।
"परमानंद " है प्रेम-पुजारी ,प्रेम को आज सलाम कियो है ।
मोहनी राग सुनो मम कान ,बुलाने पे जाने को मन कर डारो ।
घन केश भए अनुरागिन के,अरु बेल बनी तब चूनर सुन्दर ।
पादप झीने वस्त्र बने है , यौवन देह बिलोकहु अन्दर ।
प्रेमसुधा झरे आज झमाझम ,अलोकिक डोर से बाँध लियो है ।
मोहि बना के प्रेम दीवाना ,कुदरत कैसो खेल कियो है ।
या रस पी के प्यास बुझे ना ,पवन प्रेम को रस ऐसो है ।
स्वाद चखो इसका अब तुम भी ,हरि के प्रेम को रस कैसो है ।
राधा ने प्रेम की जोत जलाई ,पुंज प्रकाश को छोड़ दियो है ।
पुंज के उजियारे में मैंने , सार समंदर देख लियो है ।
प्रेम ही जग का सार है यारो ,प्रेम को आज स्वीकार कियो है ।
प्रेम निभाने जग में आये ,प्रेम लियो है प्रेम दियो है ।
प्रेम की मादकता भई ऐसे ,जग को आज भुलाय दियो है ।
"परमानंद " है प्रेम-पुजारी ,प्रेम को आज सलाम कियो है ।
Comments
Post a Comment