हर बार की तरह इस बार भी GRA (Group For Rural Activities) द्वारा एक भ्रमण का आयोजन किया गया। वनवासी बस्तियों में भारत की एक भिन्न तस्वीर को तथाकथित मुख्य-धारा के बुद्धिजीवियों के सम्मुख प्रस्तुत करना इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था जिसमें निस्संदेह सफ़लता मिली।
यात्रा का मार्ग एवं पड़ाव
इस अनोखी यात्रा के मुख्य पड़ाव थे ग्राम बारीपाडा एवं ग्राम मोलगी। जहाँ बारीपाडा की यशोगाथा वहां की वन-संरक्षण एवं जल-संसाधन के प्रबंधन में है वहीं पश्चिमी घाट की गोद में बसे मोलगी गाँव का गौरव है वहाँ की वनवासी सभ्यता एवं संस्कृति। निम्नप्रदर्शित मार्ग से GRA का दल भ्रमण करते हुए, विलक्षण संस्कृति एवं भारतीय तस्वीरों को मनः पटल पर अंकित करते हुए संस्थान पहुंचा -
नीचे यात्रा का मानचित्र संलग्न किया गया है -
वनवासी कल्याण आश्रम नाशिक
दादर रेलवे-स्टेशन से पंचवटी एक्सप्रेस पर माफ़िया (एक मजेदार खेल ) खेलते हुए GRA का दल शाम को करीब साढ़े नौ बजे नाशिक-रोड रेलवे-स्टेशन पहुंचा। वहां से सभी को वनवासी कल्याण आश्रम ले जाया गया जहाँ रात्रि के विश्राम की व्यवस्था की गई थी। महेश जी ने बैठक में बताया कि किस प्रकार वनवासी कल्याण आश्रम समाज एवं देश के अनछुए पहलुओं के कल्याण में श्रद्धा से रत है। साथ ही आगे की भ्रमण-योजना के बारे में भी संक्षिप्त जानकारी दी गई। वनवासी कल्याण आश्रम के बारे में और जानकारी संस्था की
वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है।
बारीपाडा गाँव
अगले दिन प्रातः पाँच बजे बारीपाडा गाँव के लिए चार टवेरा गाड़ियों से दल निकल पड़ा। बारीपाडा महाराष्ट्र के धुळे नामक जिले की सकरी तालुका में एक गाँव है, जो मापलगाँव पंचायत के अंतर्गत आता है। गाँव वालो ने जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के साथ सामाजिक ढाँचा सुनियोजित करने में उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इस कार्य में वनवासी कल्याण आश्रम एवं जनसेवा फाउंडेशन ने भरपूर सहायता की। वनवासी कल्याण आश्रम के बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज के वाईस प्रेजिडेंट श्री चेतराम पवार जी ने बताया कि किस प्रकार बारीपाडा ने जल-संकट-ग्रस्त ग्राम से जल-संवर्धक ग्राम तक का सफर तय किया।
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दल को सम्बोधित करते हुए महेश जी |
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गाँव में हुए विलक्षण प्रयास के बारे में बताते हुए
श्री चेतराम पवार जी |
फसलें
इस वार्तालाप एवं परिचय के बाद हम लोगों को गाँव द्वारा संवर्धित करीब ११०० एकड़ वनस्थली को देखने का मौका मिला। रास्ते में मिले खेतों में मुख्य रूप से गेहूँ एवं प्याज़ की फसल दृष्टि गोचर हुई।
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बारीपाडा गाँव में गेहूं का एक खेत |
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प्याज़ का एक खेत |
संरक्षित वन
संरक्षित एवं संवर्धित वन-क्षेत्र में मुख्य रूप से सागौन के पेड़ हैं, अपितु महुआ और पलाश के लाल फूले पेड़ भी बीच-बीच में मशाल लेकर खड़े हैं। पानी को रोकने के लिए छोटे-छोटे गड्ढे बनाये गए हैं तथा एक चेक-डेम भी निर्मित किया हुआ है।
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बारीपाडा में ग्रामवासियों द्वारा संवर्धित एवं संरक्षित वन-क्षेत्र |
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महुए की सघन एवं शीतल छाँव में विश्राम |
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सागौन के वृक्षों का अवलोकन करता GRA का दल |
पानी की व्यवस्था
गाँव ने न केवल अपनी पानी की समस्या हल की अपितु पड़ोस के पांच गावों में पानी की मुफ्त आपूर्ति कर रहा है। संलग्न चित्र में वो कुए एवं पंप हाउस है जहाँ से दूसरे गावों को पानी सप्लाई किया जाता है।
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पावर-हाउस एवं मुख्य कुआं |
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कुआँ |
शिक्षा एवं जागरूकता
गाँव में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य है और स्कूल न जाने वाले बच्चो के अभिभावकों को ५००० रुपये का जुर्माना भरना पड़ता है। इसके अलावा तरह तरह के पोस्टर एवं मौखिक जानकारी देकर लोगों को पर्यावरण और समाज के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। निष्कर्षतः गाँव अथक प्रयासों के बाद अब स्वावलम्बी एवं स्वपोषी बन गया है।
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पर्यावरण के बारे में जागरूक करता एक पोस्टर |
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स्ट्राबेरी की फसल |
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मधुमक्खी-पालन |
ग्राम मोलगी
बारीपाडा में भोजन करके GRA दल मोलगी गाँव की ओर रवाना हुआ जहाँ की होली के बारे में बहुत सुन रखा था। रास्ते में लोगों ने जगह जगह पर चंदा इकट्ठा करने के लिए लोकल टोल-नाके लगा रखे थे। यहाँ एक बात उल्लेखनीय है कि इन नाकों का संचालन करने वाले लोग तथा उनका तरीका काफी हिंसक था। मोलगी पहुँचते ही ऐसा लगा मानो किसी और दुनियाँ में आ गए हों। लोग अपनी पारम्परिक वेश-भूषा में गाजे-बाजे के साथ सड़को में नाचते हुए नज़र आये।
ये सारे दल के दल एक मैदान की ओर जा रहे थे जहाँ होली जलाई जानी थी। मैदान में लगभग २५००० लोग एकत्रित थे जो परम्परागत नृत्य में पूरी रात मगन रहे।
पूरी रात नृत्य करने के बाद प्रातः काल होली जलाई गई जो काफ़ी भव्य एवं विलक्षण थी। बीच में एक बाँस का लम्बा खम्बा था जिसे बड़े कलात्मक रूप से सजा रखा था। वहां के लोगो ने बताया की इस में एक प्रतिस्पर्धा होती है और सर्वाधिक ऊँचे बांस के खम्बे को होली में इस्तेमाल किया जाता है -
सतपुड़ा की शृंखलाओं में
रात मोलगी गाँव में बिता के दल वापस जाने को आतुर होने लगा। आते वक्त हम लोग सतपुड़ा पर्वत शृंखलाओं में लगभग पुरे दिन भ्रमण करते रहे। इस भ्रमण के दौरान तीन चीज़ें उल्लेखनीय थी -
१. पर्वतो के बीच से गुजरती नर्मदा नदी
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निर्मल जल धारिणी जीवन दायनी नर्मदा नदी |
२. सतपुड़ा पर्वत और उसकी नैसर्गिक सुंदरता
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सतपुड़ा पर्वत की ममतामयी गोद जिसने इन जनजातियों को आश्रय दिया |
३. घाटों में बसी हुई आवादी और उनका जीवन, जहाँ सरकार ने बड़ी सिद्धत से बिजली तो पहुंचा दी पर पानी के लिए काफी दूर-दूर तक जाना पड़ता है। परन्तु प्रश्न ये नहीं है कि हमें उनके जीवन में कितनी समस्याएँ दिख रही हैं प्रश्न ये है कि वे उनकी निगाहों में क्या हैं।
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घाटों में जीवन : पशुधन के लिए बनाई गई छानी (छप्पर) |
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जीवन को जीने का ढाढ़स बंधाता एक मंदिर |
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नर्मदा के किनारे एक छोटी सी बस्ती |
उपसंहार
GRA की कोई भी ट्रिप मैं भारत की विभिन संस्कृतियों का अन्वेषण करने के लिए करता हूँ और उनमें निहित अदृश्य एकता को तलाशने का प्रयत्न करता हूँ। बाहर से विभिन्न रंगों वाली भारतीय सभ्यता मुझे आतंरिक तौर पे एक होती नज़र आई। लोग जीवन की अनेक समस्याओं को अनदेखा कर खुशियाँ मनाते है और जीवन को काटने की वजाय जीने का प्रयास करते हैं। शायद भारतीयों की इसी चेष्टा ने भारत को त्योहारों का देश बना दिया। दूसरे, इन बढ़ती समस्याओं से लड़ने के लिए लोगों ने अपने अपने तरीके से प्रयास किये है जिससे बारीपाडा जैसे गाँव अन्यों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
-परमानंद
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