आसुन आँस गई कतकी
विशेष :- मालती सवैया नामक छंद का प्रयोग जिसमें सात भगण (S I I) एवं अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं।
आसुन आँस गई कतकी, रब ने सजनी अब बादर फारे।
जात किते अब खात किते, सनतान किते अब पालत बारे।
सूद बढ़ै दिन रात अरी, जनु चाँद बढ़ै रजनी उजियारे।
बीज बहाय लिए बरखा, सब नास कियो हरि पालनहारे।
आसुन = इस वर्ष, आँस गई = खटक गई, कतकी = खरीफ की फसल, किते = कहाँ, सनतान = संतान, बारे = बालक
आसुन आँस गई कतकी, रब ने सजनी अब बादर फारे।
जात किते अब खात किते, सनतान किते अब पालत बारे।
सूद बढ़ै दिन रात अरी, जनु चाँद बढ़ै रजनी उजियारे।
बीज बहाय लिए बरखा, सब नास कियो हरि पालनहारे।
आसुन = इस वर्ष, आँस गई = खटक गई, कतकी = खरीफ की फसल, किते = कहाँ, सनतान = संतान, बारे = बालक
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