बुढ़िया की सलाह
वशेष :- कविता चौपाई छंद में लिखी गई है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राएँ होती हैं एवं अंतिम वर्ण दीर्घ होता है।
Story Credits: Amit Dwivedi
बात कहूँ इक सच पहिचाना। सुन लो पंचो तुम धरि काना।
जिलाधीश इक गजब सुभावा। एक विचार सहज उर लावा।
जन-मानस की बात जनाऊ। फेरी एक लगा के आऊँ।
निकल पड़े नहीं किया विलम्बा। घूमत जात सुमिर जगदम्बा।
पहुँच गए इक ग्राम समीपा। पहर दूसरा धूप असीमा।
लटकत ताले हर घर माही। सूनो लगत कोऊ नर नाहीं।
दीखे बालक चुनत निबौरी। जुर मिल सारे करत ठिठोली।
एक बालिका उम्मर छोटी। सीस धरे घट पहिरे धोती।
वृक्ष नीम का सुन्दर छाया। एक डुकरिया सेज बनाया।
सोई डुकरिया भूम कठोरा। पास रखा जल भरा कटोरा।
गाड़ी रोक दई जिलधीसा। निकरे बाहर पग धर सीसा।
माइ माइ कह माइ उठावा। झुके सहज सिर चरनन लावा।
बेटा अरे कहाँ से आया। उठी डुकरिया वचन सुनाया।
सबहि कमावन दिल्ली धाए। तुम का करत निकम्मे आये।
जिलाधीश मन में मुस्काया। हाथ जोर के वचन सुनाया।
मैं कलक्टर माइ अभागा। जान गया सब अंतर जागा।
बेटा सुन इक बात बताऊँ। तेरा भला तुझे समझाऊँ।
बात मान दस गुना कमाओ। इसकी लूटो उसकी खाओ।
हम जैसों पे रौब जमाओ। खून चूस निज महल बनाओ।
काम परै तो हाथ न आना। महिनन साल हमें भटकाना।
होत कमाई इसमे भारी। छोड़ कलक्टर बन पटवारी।
-परमानंद
निबौरी = नीम के फल, डुकरिया = बुढ़िया, पग = पगड़ी, कमावन = कमाने के लिए, अंतर = अंतर्मन
Story Credits: Amit Dwivedi
बात कहूँ इक सच पहिचाना। सुन लो पंचो तुम धरि काना।
जिलाधीश इक गजब सुभावा। एक विचार सहज उर लावा।
जन-मानस की बात जनाऊ। फेरी एक लगा के आऊँ।
निकल पड़े नहीं किया विलम्बा। घूमत जात सुमिर जगदम्बा।
पहुँच गए इक ग्राम समीपा। पहर दूसरा धूप असीमा।
लटकत ताले हर घर माही। सूनो लगत कोऊ नर नाहीं।
दीखे बालक चुनत निबौरी। जुर मिल सारे करत ठिठोली।
एक बालिका उम्मर छोटी। सीस धरे घट पहिरे धोती।
वृक्ष नीम का सुन्दर छाया। एक डुकरिया सेज बनाया।
सोई डुकरिया भूम कठोरा। पास रखा जल भरा कटोरा।
गाड़ी रोक दई जिलधीसा। निकरे बाहर पग धर सीसा।
माइ माइ कह माइ उठावा। झुके सहज सिर चरनन लावा।
बेटा अरे कहाँ से आया। उठी डुकरिया वचन सुनाया।
सबहि कमावन दिल्ली धाए। तुम का करत निकम्मे आये।
जिलाधीश मन में मुस्काया। हाथ जोर के वचन सुनाया।
मैं कलक्टर माइ अभागा। जान गया सब अंतर जागा।
बेटा सुन इक बात बताऊँ। तेरा भला तुझे समझाऊँ।
बात मान दस गुना कमाओ। इसकी लूटो उसकी खाओ।
हम जैसों पे रौब जमाओ। खून चूस निज महल बनाओ।
काम परै तो हाथ न आना। महिनन साल हमें भटकाना।
होत कमाई इसमे भारी। छोड़ कलक्टर बन पटवारी।
-परमानंद
निबौरी = नीम के फल, डुकरिया = बुढ़िया, पग = पगड़ी, कमावन = कमाने के लिए, अंतर = अंतर्मन
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