पठा में
बड़ी खुसी की बात भइया, रेलगाड़ी आई पठा में।
गड्ढा खुद गए पानी हो गओ, फसलें खूब लगाईं पठा में।
बिलात नासनी दारु हो गई, पुलस की चौकी आई पठा में।
ई दारु से नकुअन दम है, जा कीने फैलाई पठा में।
माव-पूस में जाड़ो पर गओ, धुंधई धुंध सी छाई पठा में।
दिन रात किसान ने मेनत कर कें, हरियाली फैलाई पठा में।
ऋतुराज की रजधानी-सी, सुंदरता बरसाई पठा में।
ऐसो दिन हमने न देखो, जब फसलें मुरझाई पठा में।
जिदना घूमो उदना जानो, भौतई लगी बराई पठा में।
तातो-तातो गुर मिल गओ सो, पिकनिक उते मनाई पठा में।
मिल-जुर कें सब रैवे वारे, खुसी फसल लहराई पठा में।
मिटै समाज को बैरी जीने, छुआ छूत फैलाई पठा में।
-परमानंद
पठा = एक गाँव का नाम, बिलात = ज्यादा, नासनी = नाश करने वाली, कीने = किसने, जिदना = जिस दिन, उदना = उस दिन, बराई = ईख (गन्ना), तातो = गरम, गुर = गुड़, उते = वहाँ, रैवे वारे = रहने वाले
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