पूत मेरा तारे संसार
कवित्त -
भोर में नहाते, झट भोर उठ जाते जो वो,हुलस समाए मन, इसकूल जाते हैं।
कूदते हैं फांदते हैं, गार सब रांदते हैं,
कल की न जानते हैं, मौज वो उड़ाते हैं।
श्रम में जो आंचते हैं, वर्णमाला बाँचते हैं,
करम लिखे को पर, बाँच नहीं पाते हैं।
चौपाई -
सोलह साल उमरिया आई। लेकर तसला करो कमाई।
करजा की हो गई भरमार। पूत मेरा तारे संसार।
करजा की हो गई भरमार। पूत मेरा तारे संसार।
-परमानंद
हुलस = उल्लास / प्रसन्नता, इसकूल = स्कूल, गार रांदना = ऊधम करना, पूत = पुत्र
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