बूढी आँखे
अंबर को तकती वे बूढी आँखे कहती है
कथा निठुर नियति की
तब की, जब लाल पोतनी आसमान में,
उषा चहक पोता करती .
जब सावन में नन्ही बिटिया सी,
बूंदे आँगन में नाचा करती .
जब खेत पहन धानी पगड़ी,
इठलाते थे इतराते थे .
जब गन्ने के खेतो में छिप के,
बाल मंडली घुस जाती थी .
जब कूपों में पानी होता था ,
जब खाने को दाने होते थे ,
जब इन आखों के साथ अंग में,
भी पुलक थिरका करती.
जब सदा बसंती हृदयों में,
प्रेम लहर उमड़ा करती.
फिर आखें गीली हो जाती हैं;
क्योंकि आधुनिक विकास की गर्मजोशी में
बादलों के साथ ह्रदय भी सूख गए .
कथा निठुर नियति की
तब की, जब लाल पोतनी आसमान में,
उषा चहक पोता करती .
जब सावन में नन्ही बिटिया सी,
बूंदे आँगन में नाचा करती .
जब खेत पहन धानी पगड़ी,
इठलाते थे इतराते थे .
जब गन्ने के खेतो में छिप के,
बाल मंडली घुस जाती थी .
जब कूपों में पानी होता था ,
जब खाने को दाने होते थे ,
जब इन आखों के साथ अंग में,
भी पुलक थिरका करती.
जब सदा बसंती हृदयों में,
प्रेम लहर उमड़ा करती.
फिर आखें गीली हो जाती हैं;
क्योंकि आधुनिक विकास की गर्मजोशी में
बादलों के साथ ह्रदय भी सूख गए .
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