मैं भूल गया

मैं भूल गया जीवन के सुंदर, और रंगीन नज़ारो मे।
मैं भूल गया, मैं भटक गया, कलिओं की मस्त बहारो मे।
प्यार दुलार की नौटंकी, अब भी छलती भरमाती है,
जीना मुश्किल है दूर यहाँ, सुधियों के कारागारों में।
मरता, मरकर भी खैर नहीं, ये यूँ ही पूजा जाता है,
सोता है ऐसे प्रेम यहाँ, ज्यों सोता पीर मज़ारों में।
तुम देखो वैसा ही पाओगे, जैसा मैं चिर से दिखता हूँ,
पे होता पल पल परिवर्तित, ज्यों बदले रेत किनारों में।

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