आरक्षण की नीति

बीजा तो डंगरन के बये ते,
जोन विषैले बौला भये ते,
ऐसो नकुअन दम हो गओ है बहुतै बेल बढ़ाई रे।   
सवा डेवढ़ी मेनत कर रओ,
पउआ भर को फ़ल मिल रओ, 
अरी व्यवस्था ऐसी तेने काय धरी निठुराई रे।  
एक भेद में भेद डार के,
क़ाबलियत पे रेत डार के,
ऐसी-वैसी जुगत लगा के चकरी बुरइ चलाई रे। 
जिने चाने उने न मिल रओ,
सबकी छतियन मूंग दर रओ,
आरक्षण की राजनीति ने खोद दई अब खाई रे।  


डंगरन = खरबूजा, बौला = बेल, बये = बोए, ते = थे, नकुअन दम होना  = परेशान हो जाना, मेनत = मेहनत, पउआ = एक चौथाई, चाने = चाहिए

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