शनिवार को बघार

छन्द : कवित्त

कल है आराम सन्डे ,नौगाँव से लाये अंडे ,
आज शनिवार को ,बघार जो लगत है।
धना ,मिर्च व मसाले ,मेस से चुराए सारे ,
सौ-सौ जतन करे ,रात भर जगत है ।
येन-केन-प्रकारेन पंगत में बैठ गए ,
आ परे सर कोई ,होश अब उडत है ।
'परमानन्द'भाग ले सबहि बिथर गए ,
आह रे वो सुवाद , चोट अब करत है ।
                                   -परमानंद 

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