सूरज से व्योम निकला

जो था पराया, वो अपना कौम निकला।
शामक था जो, वो आखिर होम निकला।
समझा था पत्थर जिसे अब तक,
वो यूँ पिघला, कि मोम निकला।
मद होगा सुरा सा ये सुना था,
इस सुराही में तो मादक सोम निकला।
व्योम से उगा करता था सूरज,
आज सूरज से ज़रा सा व्योम निकला।

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