यह जग उलझन माहि

रे परमा ! यह जग उलझन माहि.
पग-पग उलझन,हर डग उलझन.
बिगड़े उलझन,बने तो उलझन.
मोह बना तोरा बैरी मूरख,सुलझन ढूंढत नाहि.
रे मूरख ! यह जग उलझन माहि.
                              -परमानंद 

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