भारत तेरी कहानी
कोई बेबस है,कोई बेघर है,कोई निवस्त्रे घूम रहे।
कहीं सिजियान पे नींद न आवै ,कहीं जमीनें चूम रहे।
कहीं बटर में ब्रेड न भावै,कहीं टुकड़ियन तरस रहे।
कहीं दुबक रहे तन पाँवन में,सर पे ओले बरस रहे।
मधुर पवन के कहीं पे झोंके,कहीं पे झंझा पानी।
अरे ! विडम्बना से तर-तर है भारत तेरी कहानी।
-परमानंद
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