तुमसे ह्रदय हटाऊँ कैसे
मानस में उठती लहरों की, नीरस गाथा गाऊूँ कैसे।
पनप रहे भोले अंकुर को कुचल के आगे जाऊँ कैसे।
नेह लगा तुमसे वनिते ! इस बात को आज बताऊँ कैसे।
रंग चढ़ा जिसमें गहरा, उस अंबर रंग चढ़ाऊँ कैसे।
बिके हुए मन के मधुवन में, वंशी मधुर बजाऊँ कैसे।
नजर हटाने तक वश मेरा, तुमसे ह्रदय हटाऊँ कैसे।
-परमानंद
पनप रहे भोले अंकुर को कुचल के आगे जाऊँ कैसे।
नेह लगा तुमसे वनिते ! इस बात को आज बताऊँ कैसे।
रंग चढ़ा जिसमें गहरा, उस अंबर रंग चढ़ाऊँ कैसे।
बिके हुए मन के मधुवन में, वंशी मधुर बजाऊँ कैसे।
नजर हटाने तक वश मेरा, तुमसे ह्रदय हटाऊँ कैसे।
-परमानंद
मानस = मन, वनिते = एक लड़की के लिए सम्बोधन, अंबर = वस्त्र,
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