वक्त है जय घोष का
जब द्वंद के बिच्छू तुझे डसने लगे၊
जब तर्क तेरे भाव पर हंसने लगे।
दिए की आग सा जलना पड़ेगा,
कुटी को जब तिमिर छलने लगे।
फागुन को विदा कहना ही होगा,
कोई कली जादू अगर करने लगे।
उषा की बांग तब देनी पड़ेगी,
क्षितिज में सूर्य जब ढलने लगे।
समझ ले वक्त है जय घोष का,
मशाल-ए-जंग जब जलने लगे।
जब तर्क तेरे भाव पर हंसने लगे।
दिए की आग सा जलना पड़ेगा,
कुटी को जब तिमिर छलने लगे।
फागुन को विदा कहना ही होगा,
कोई कली जादू अगर करने लगे।
उषा की बांग तब देनी पड़ेगी,
क्षितिज में सूर्य जब ढलने लगे।
समझ ले वक्त है जय घोष का,
मशाल-ए-जंग जब जलने लगे।
- परमानंद
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