जग-गोकुल

जब सहज भाव की कलकल होती ;
मन-यमुना के तीरे ।
ऐसो लागै श्याम पधारे 
छुप के देख सखी रे ।

ओ मद-मस्त हवा ,
सुन कान लगा ;
ज़रा सम्हल के जाना ।
तेरी आहट  से कहीं श्याम को;
कोई भनक ना देना । 

देख ज़रा उन पुष्पों को ,
उस निर्मल सी शबनम को ।
शायद कान्हा वहाँ छिपा है,
देख पात की थिरकन को।

देख की शायद लुका कन्हैया ,
नवजात शिशु की मुस्की में ।
भावना से ली जाय अगर तो,
कान्हा चाय की चुस्की में ।

मधुवन, उपवन, सावन ,
रिमझिम ,किसलय ,
कुसुम और वृक्ष लता में ।
नटखट नन्द-कुमार छुपा है ,
जीवन की इस चंचलता  में ।

मत सोच कि  कान्हा लुप्त हुआ
 अब,वृन्दावन से गोकुल से ।
सारा जग अब गोकुल है रे,
बाहर  झाँक ज़रा संकुल से ।

माँ की मधुमय वाणी से,
जब गोपाल नजर तू आयो  रे ।
परमानन्द के श्याम सखा !
तब उर आनंद समायो  रे । 

                            ---परमानंद 

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