पिंजरा धरो इतइ रए जाने
पिंजरा धरो इतइ रए जाने, पंछी उड़ जाने तत्काल।
नाते घरी भरे के लाने,
जे संग तोरे नई जाने;
आँखी मिंचत नज़र नई आने, माया को सबरो जंजाल।
जो नित-नित होत पुरानो,
अरे,मरम न तेने जानो;
पिंजरा काये तोए मिठानो, जी में है नइयां सर-स्वाद।
भीतर बैठी जोन चिरैया,
उको कछु भरोसो नइयां;
'परमा' मानत काये नइयां, भज ले बृजमोहन बृजलाल।
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