पचमढ़ी

जब इम्तिहान सर होते है, जब पुलक कहीं खो जाती है।
जब निशा चिरौरी करती है, जब उषा धमक दहलाती है।
जिस-बीच परीक्षा पर-इच्छा से कृष्ण रात सी छाती है।
पचमढ़ी उदित हो नागमणी सी, तू दस्तक दे जाती है। 

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