मनवा अरमाँ ढह गयो रे
मनवा अरमाँ ढह गयो रे !
हरि आये थे तोरी नगरिया ,तें सोवत रह गयो रे ।
मुख-मंडल की शीतल आभा ,देख न पायो रे ।
पट-पीताम्बर पड़ो लखाई , पीछू धायो रे ।
सुध-बुध हरने वाली मुरली ,न सुन पाई रे ।
पडा रहा तू अरे बावरे , तमस समाई रे ।
बौर ,कुसुम अरू किसलय से हरि ,देह सजाई रे ।
कोयल कूक बनी मुरली ,हरि मधुर बजाई रे ।
ऐसो सुगर सलोनो प्यारो ,श्याम न देखो रे ।
मूरख परमानंद हरि को , मोल न लेखो रे ।
हरि आये थे तोरी नगरिया ,तें सोवत रह गयो रे ।
मुख-मंडल की शीतल आभा ,देख न पायो रे ।
पट-पीताम्बर पड़ो लखाई , पीछू धायो रे ।
सुध-बुध हरने वाली मुरली ,न सुन पाई रे ।
पडा रहा तू अरे बावरे , तमस समाई रे ।
बौर ,कुसुम अरू किसलय से हरि ,देह सजाई रे ।
कोयल कूक बनी मुरली ,हरि मधुर बजाई रे ।
ऐसो सुगर सलोनो प्यारो ,श्याम न देखो रे ।
मूरख परमानंद हरि को , मोल न लेखो रे ।
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