समय जगाने आ गया

चीख-चीत्कार को ,
घोर अन्धकार को ,
नव प्रभात खा गया ।
समय जगाने आ  गया । 
                 
वनिते ! देख ज़रा ;
आसमान साफ़ है ।
अंशुमन की लालिमा से 
पूर्व का क्षितिज भरा ।
माँ की कोख में तुझे ,
अब कोई डर नहीं ।                    
हत्यारों के हाथ की ,                        
खैर अब नहीं रही ।                    
किलकारियों से बेटियों की,
सुख-वितान छा गया ।
समय जगाने आ गया ।

जमाने से न त्रिये डर ,
सामना ह्रदय से कर ।
तुझमे लक्ष्मीबाई है,
वीरांगना अवंतिका ।
और दूजी ओर तू ही ,
प्रेम-पूरित लतिका ।
प्रेम के बदले ए बसंत ,
प्रेम ले के आ गया ।
समय जगाने आ गया ।

जाग जाग जाग के ,
ए चित्रकथा बांच ले ।
सुलगते उत्साह को ,
और ज़रा सी आंच दे ।
आज सीधी रीड कर ,
सामर्थ्य से तू लीड कर ।
देख झाँक कर हिये में ,
वीर रस समा गया ।
समय जगाने आ गया 

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