यादों का धुंधलका
खुद को यादों से खींचता हुआ ,
भावनाओं को आंसुओं से सींचता हुआ।
मैं छत पर टहल रहा हूँ,
इक दावानल में दहल रहा हूँ।
वो राव सर की मानवता, वो कामिनी मैडम का थप्पड़ ,
वो गिल्ली-डंडा का मैच, और नंदू की आँख में गिल्ली का लगना।
"भाईसाब! ऐसे कैसे हो जायेगा ?"
-संदीप सर दिमाग में भँवरे की तरह मन्नाते हैं ,
चुपके से रो ले शब के सन्नाटे ये सन्नाते हैं।
बलवीर सर की सीटी,
योगा के साथ पीटी।
तब भी सताती थी और अब भी ,
तब होने से, अब न होने से।
नवोदय के कण-कण में,
हवा में,
नज़ारों में,
लड़कों की आपसी अल्हड़ता में,
प्यार में , तकरार में,
शिक्षकों की वाणी में ,
अंजाना सा आकर्षण घुला है;
जो आज रुलाने पे तुला है।
यादों का सिंधु, बनकर के जल-बिंदु ,
अब गाल तक उत्तर आया।
तब याद कुछ इतर आया।
जोशी सर की क्लास, कसमसाता सा उलास।
-"छाया मत छूना, मन होगा दुःख दूना"
-परमानन्द
भावनाओं को आंसुओं से सींचता हुआ।
मैं छत पर टहल रहा हूँ,
इक दावानल में दहल रहा हूँ।
वो राव सर की मानवता, वो कामिनी मैडम का थप्पड़ ,
वो गिल्ली-डंडा का मैच, और नंदू की आँख में गिल्ली का लगना।
"भाईसाब! ऐसे कैसे हो जायेगा ?"
-संदीप सर दिमाग में भँवरे की तरह मन्नाते हैं ,
चुपके से रो ले शब के सन्नाटे ये सन्नाते हैं।
बलवीर सर की सीटी,
योगा के साथ पीटी।
तब भी सताती थी और अब भी ,
तब होने से, अब न होने से।
नवोदय के कण-कण में,
हवा में,
नज़ारों में,
लड़कों की आपसी अल्हड़ता में,
प्यार में , तकरार में,
शिक्षकों की वाणी में ,
अंजाना सा आकर्षण घुला है;
जो आज रुलाने पे तुला है।
यादों का सिंधु, बनकर के जल-बिंदु ,
अब गाल तक उत्तर आया।
तब याद कुछ इतर आया।
जोशी सर की क्लास, कसमसाता सा उलास।
-"छाया मत छूना, मन होगा दुःख दूना"
-परमानन्द
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