माया का जाल
छन्द: कुण्डलिया
या माया का जाल है ,करे चुटीले घात।
'परमा' तुम मूरख भये ,फिर फिर फसने जात।
फिर फिर फसने जात , मोह के फांस निराले।
करे किसी से दूर , किसी को गले लगा ले।
देख मान सनमान , तु फूला नहीं समाया।
आँख सुबुधि की खोल , तज दे मोह या माया।
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