स्कूल में पहला दिन
घसीटा आज उत्साह में था. जल्दी जल्दी मचा के सारा घर सिर पे उठा रखा था. और क्यों न उठाये आज स्कूल का पहला दिन जो था. बब्बी और उसके दोस्तों को रोज बैग लेके स्कूल जाते देखता और खुद के बड़े हो जाने की और एक बड़े बैग के साथ स्कूल जाने की कल्पना करता. स्कूल जाने का सपना तो आज सच होने वाला था पर बैग के लिए पूछा तो पापा ने सीधा बोल दिया - “बोरी का थैला ले जा. मैंने बारवीं तक की पढाई में उसी से काम चलाया. और तुझे पहले दिन से ही बैग चाहिए? पैसे हो जायेंगे तो बैग भी आ जायेगा. और हाँ कापी-वापी कुछ नहीं मिलेगी सलेट-बरतनी से सीख !” अब करता क्या? मन मार के थैला उठाया, उसमें सलेट भरी और रुआंसी शकल बना के खड़ा हो गया. इतने में बब्बी ने पुकारा – “घसीटा ! ओये टेम हो गया बे, स्कूल नहीं जाना क्या ?” दरअसल घसीटा के पिताजी ने बब्बी को बोल दिया था कि जब भी स्कूल जाए तो घसीटा को साथ ले ले और स्कूल में भी सही किलास में बिठा दे. बब्बी की आवाज सुनते ही घसीटा थैला लेकर बाहर दौड़ा. माँ पीछे-पीछे दौड़ी. बाहर ही घसीटा को रोका और धोती के छोर में बंधा एक रुपये का सिक्का घसीटा को देते हुए बोली – “ले एक रुपये का कुछ खा लेना. और हाँ पिताजी को इस बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए.”
आखिर टोली स्कूल पहुंची, प्रार्थना हुई और बच्चो को अपनी अपनी किलास में बैठने को बोला गया. घसीटा दौड़ के निर्दिष्ट कमरे में पहुंचा और अपने लिए एक अच्छी सी जगह तलास ली जहाँ चटाई फटी न हो. पर ये क्या ! उसे वहाँ से उठा दिया गया क्योंकि गौतम जी का लड़का वहाँ बैठता था. और मास्टर जी से पहले ही गौतम जी ने बोल दिया था की उनका बच्चा ठीक मास्टर जी के बगल में अच्छी चटाई पर बैठेगा. मास्टर जी चटाई पे बैठे हैं. बच्चे शांत, सहमें से मास्टर जी की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं. मास्टर जी ने कहा – “तो आज हम छोटा ‘अ’ बनाना सीखेंगे” इतने में अमन सेठ चिल्लाया –
“क्यों बे चमरा तू कभी सुधरेगा भी की नहीं ? उस दिन पिताजी ने नल से पानी भरते समय तुझे डाटा था न ! तब तो तेरे पिताजी ने बचा लिया. आज फिर तूने पानी छू लिया !”
मास्टर जी झुंझलाए – “ये अमन क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रहे हो ? छू लिया तो क्या ?”
अमन – “पिताजी बोलते हैं कि घसीटा चमार है. उसका छुआ पानी पीने से भगवान जी गुस्सा होते हैं. पिताजी ने सख्त मना किया है. और बोला है कि घसीटा से दूर रहना. और उस दिन जब आप एडमिशन के लिए हमारे घर आये थे तब आप को भी तो बोला था चमारों-मेह्तरों के बच्चों को अलग पंक्ति में बिठाने को. पिताजी से आप की भी शिकायत करूँगा.”
पास के लोग इकट्ठे हुए. घसीटा को बुरी तरह डाट के भगाया गया और दो-चार मास्टर जी को भी सुननी पड गईं. घसीटा को अगली बार से पानी न छूने के लिए कह दिया गया. मास्टर जी विचारों के प्रगतिवादी थे पर कुछ न बोल सके. वे हतप्रभ थे कि छः साल के बच्चे के दिमाग में इतना ज़हर !
माहौल शांत हो गया. मास्टर जी ख्यालों में थे. घसीटा घर को मुड़ चला. उसके एक हाथ में थैला और दुसरे में एक रुपये का सिक्का था. सोचा था स्कूल के पास के दूकान से टाफी खरीदेगा पर अब जैसे टाफी वाली बात दिमाग से उड़ गई. दोनों मुट्ठियाँ जोर से बाँध रखी थी. थैले की तनी और एक रुपये का सिक्का दोनों पसीजी हुई बंद मुट्ठी में भीग से गए. और इधर एक आंसू भी गाल से सरकता हुआ नीचे टपक गया.
आखिर टोली स्कूल पहुंची, प्रार्थना हुई और बच्चो को अपनी अपनी किलास में बैठने को बोला गया. घसीटा दौड़ के निर्दिष्ट कमरे में पहुंचा और अपने लिए एक अच्छी सी जगह तलास ली जहाँ चटाई फटी न हो. पर ये क्या ! उसे वहाँ से उठा दिया गया क्योंकि गौतम जी का लड़का वहाँ बैठता था. और मास्टर जी से पहले ही गौतम जी ने बोल दिया था की उनका बच्चा ठीक मास्टर जी के बगल में अच्छी चटाई पर बैठेगा. मास्टर जी चटाई पे बैठे हैं. बच्चे शांत, सहमें से मास्टर जी की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं. मास्टर जी ने कहा – “तो आज हम छोटा ‘अ’ बनाना सीखेंगे” इतने में अमन सेठ चिल्लाया –
“क्यों बे चमरा तू कभी सुधरेगा भी की नहीं ? उस दिन पिताजी ने नल से पानी भरते समय तुझे डाटा था न ! तब तो तेरे पिताजी ने बचा लिया. आज फिर तूने पानी छू लिया !”
मास्टर जी झुंझलाए – “ये अमन क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रहे हो ? छू लिया तो क्या ?”
अमन – “पिताजी बोलते हैं कि घसीटा चमार है. उसका छुआ पानी पीने से भगवान जी गुस्सा होते हैं. पिताजी ने सख्त मना किया है. और बोला है कि घसीटा से दूर रहना. और उस दिन जब आप एडमिशन के लिए हमारे घर आये थे तब आप को भी तो बोला था चमारों-मेह्तरों के बच्चों को अलग पंक्ति में बिठाने को. पिताजी से आप की भी शिकायत करूँगा.”
पास के लोग इकट्ठे हुए. घसीटा को बुरी तरह डाट के भगाया गया और दो-चार मास्टर जी को भी सुननी पड गईं. घसीटा को अगली बार से पानी न छूने के लिए कह दिया गया. मास्टर जी विचारों के प्रगतिवादी थे पर कुछ न बोल सके. वे हतप्रभ थे कि छः साल के बच्चे के दिमाग में इतना ज़हर !
माहौल शांत हो गया. मास्टर जी ख्यालों में थे. घसीटा घर को मुड़ चला. उसके एक हाथ में थैला और दुसरे में एक रुपये का सिक्का था. सोचा था स्कूल के पास के दूकान से टाफी खरीदेगा पर अब जैसे टाफी वाली बात दिमाग से उड़ गई. दोनों मुट्ठियाँ जोर से बाँध रखी थी. थैले की तनी और एक रुपये का सिक्का दोनों पसीजी हुई बंद मुट्ठी में भीग से गए. और इधर एक आंसू भी गाल से सरकता हुआ नीचे टपक गया.
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