नमामि जीवन धार गंगे

नमामि जीवन धार गंगे,
नित नवल झंकार गंगे। 
प्यासी धरा का मूक-न्यौता,
कर सहज स्वीकार गंगे। 

नित भगीरथ टेरते हैं,
नाम तेरा फेरते हैं।
शुष्क-निर्जल तप्त नैना 
ओर तेरी हेरते हैं। 

हम बुलाते शम्भु बाबा,
हम मनाते शम्भु बाबा। 
जन-जनावर एक सुर से,
जय कि भोले शम्भु बाबा। 

क्यों तनिक न तू ठहरती,
क्यों तनिक न तू लहरती। 
बेजान-सी होती धरा में,
क्यों न थोड़े प्राण भरती। 

है जो भीषण धार तेरी,
क्या यहीं है हार मेरी?
स्वार्थ-सेवित मूढ़ जन को,
या कि ये दुत्कार तेरी। 

या कि अब वो वन नहीं हैं,
या कि काले घन नहीं हैं। 
कर सकें सत्कार तेरा,
या कि ऐसे जन नहीं हैं। 

हम जो तेरे दिव्य बेटे,
क्यों न हमको आन भेंटे।
हम बनाएँ शिव-जटा जो,
वेग को तेरे समेटे। 

हम न उर में स्वार्थ धरते,
नित सदा परमार्थ करते। 
जो कि 'हलमा' तब किया था,
वो ही बारंबार करते। 

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