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छवि तेरी

लाख करूँ कोशिश पे तेरी छवि न मिटाई जाती है। पर्वत-निर्जन-धरती-अंबर बस दृष्टि तुम्हें ही पाती है। मानस अंकित सुधियों को कुरेद अनिल मुस्काती है। हँसती है मेधा देख-देख छलनी छवि को कर जाती है।