बुंदेली


मम्मा तुम न समझौ

कैसी लबरी शान, मम्मा तुम न समझौ।
जनता दे रइ प्रान, मम्मा तुम न समझौ।
चौरे चकरे गोला डर गए
नइयाँ गाड़ी-वान, मम्मा तुम न समझौ।
सूका परौ बितर दये पइसा
कक्कू खा गए पान, मम्मा तुम न समझौ।
डेओडी-डेओडी पानी मांगत
औंदे डरे किसान, मम्मा तुम न समझौ।
आरच्छन की न्याव मचा लई
दूषित छुओ पिसान, मम्मा तुम न समझौ।

कवित्त

आते जो यहाँ हैं, नीचे तबके का दुख लिए,
हिन्दू के विचार में, वो मोल नहीं पाते हैं।
भंजक बल फैलते हैं, एकता से खेलते हैं,
उन्ही को वो खींचते, जो यहाँ न समाते हैं।
खुद को जो हिन्दू कहें, निज में न माने इन्हे,
ये जो रुख मोड़ दें तो, घोर गरियाते हैं।

भोर में नहाते, झट भोर उठ जाते जो वो,
हुलस समाए मन, इसकूल जाते हैं।
कूदते हैं फांदते हैं, गार सब रांदते हैं,
कल की न जानते हैं, मौज वो उड़ाते हैं।
श्रम में जो आंचते हैं, वर्णमाला बाँचते हैं,
करम लिखे को पर, बाँच नहीं पाते हैं।

सवैया

विशेष :- मालती सवैया नामक छंद का प्रयोग जिसमें सात भगण (S I I) एवं अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं।

आज लड़ी उनसे अखियाँ, सखियाँ बतियाँ कर जान निकारी।
गागर आज भई हलकी, छलकी उमगी भरजोर हुलारी।
बोल न बोल गए बलमा, बस नैनन तौल भई बनियारी।
लूट गओ हम खों बनिया, कर नैनन की हलकी हुसियारी।

बनियारी = व्यापार, बनिया = व्यापारी

पृष्ठभूमि:- आज भी वो दिन याद आ जाता है जब अम्मा बचपन में नहलाती थी।

धूसर अंग धरे करिया, बनियान तने मल सी कर डारी।
खेलत धूलि न भाँय करै, रत नाहिं घरै दिन-भोर-दुपारी।
बाप दुलार बिगार दिए, न उसार करे बनवै अधकारी।
ऊ दिन खों अब याद करों, सपरावत खीझ परी महतारी।

धूसर = धूल से सने, तने = तूने, भाँय = होश, रत = रहता, उसार = सेवा, खों = को, सपरावत = नहलाती, महतारी = माँ

पृष्ठभूमि:- रोड का काम प्रारम्भ होते ही मजदूर समुदाय में आशा जाग उठी।

रामपुरा अब रोड डरे, चल री चल खोद भरें कछु माटी।
काम करे कछु बात बने, अब भूखन जात न उम्मर काटी।
राज लगे उनखों जिनकी, धन दौलत है जन की बरबादी।
हाड़ गला नस खून बना, अपनी सजनी यह है परपाटी।

रामपुरा = एक गाँव का नाम, उनखों = उनको, हाड़ गला = हड्डियाँ गलाना

आसुन आँस गई कतकी, रब ने सजनी अब बादर फारे।
जात किते अब खात किते, सनतान किते अब पालत बारे।
सूद बढ़ै दिन रात अरी, जनु चाँद बढ़ै रजनी उजियारे।
बीज बहाय लिए बरखा, सब नास कियो हरि पालनहारे।

आसुन = इस वर्ष, आँस गई = खटक गई, कतकी = खरीफ की फसल, किते = कहाँ, सनतान = संतान, बारे = बालक

बादर से हिम के पथरा, बरसे हिरदे जब मार कटारी।
चारउ ओर भई चपटी, फसलें झकझोर सपट कर डारी।
ढोरन गातन खून बहै, कछु चोटन से दिहिया तज डारी।
थारन मूड़ ढके दुबके, 'परमा' अब रूठ गओ गिरधारी।

बादर = बादल, पथरा = पत्थर, चारउ = चारों, ढोरन = पशुधन के, गातन = अंगों में, चोटन = चोटों से, दिहिया = शरीर/देह, थारन = थालियों से, मूड़ = सिर

पृष्ठभूमि:- बुंदेलखंड के उस मजदूर परिवार की कल्पना करें जिसका मुखिया शराब पीता है और यहीं से जन्म लेती हैं गरीबी, भूख और घरेलू हिंसा जैसी गंभीर समस्याएँ।

खोरन ठोकर खात फिरै, ढुलकै-लुढकै नहि होस ठिकाने।
रंजित नैनन खून चढ़ो, पतलून धरे सब कीच भिड़ाने।
मारत, डारत तेल सखी, नहि लाज रखै सजना बरयाने।
देख सराब खराब बला, 'परमा' अनवास न भौत खटाने।

खोरन = गलियन, भिड़ाने = लथपथ, बरयाने = पागल हो जाना, अनवास = उपयोग करना/सेवन करना, खटाने = जिन्दा रहना

असाढ़ की पैली बुंदियाँ

पैली बेर को ऐसो बरसो,
सबरो जिया जुड़ा गओ तरसो।
बीज करो सरजू की अम्मा,
भ्याने नईं तो बै दें परसों।
भैसें बाँध देव बहार खों,
जुड़ा जान दो उने भीतर सों।
पर को बीज अब धरो कां है,
डेओढ़ लगी न, बीते बरसों।
तिली मूंग कतकी ने खा लए,
चैती लील गई सब सरसों।
हर साल सो हर न रावै,
हाथ जोर कै दो हर सों।

पैली बेर = पहली बार, जुड़ा = ठंडक, भ्याने = कल सुबह, बै = बुआई, कां = कहाँ, कतकी = खरीफ की फसल, चैती = रबी की फसल, हर = प्रत्येक/हल/हरि (ईश्वर), रावै = रहे

बड़े पावने भौत नसाने

ठेका वारी दारू पीके,
बड़े पावने भौत नसाने।
डरे रात कउ नाली मेंहा,
होंस कछु न रात ठिकाने।
हम तो सांसू कै-कै हारे,
बात सुने न एकउ माने।
बिटिये मारे, बार उखारे,
कभउँ पकर उन्ना दे ताने।
रकम कमाबे की कोउ काबे,
सौ-सौ हीला करे बहाने।
बड़े दुखन से बिटिया रै रई,
सांसू एक न देत उराने।
निभा-निभा के सबरो सै रई,
बड़े पावने भौत नसाने।

पावने = दामाद, कउ = कहीं, मेंहा = में, भौत = बहुत, नसाने = बिगड़े, सांसू = सच्ची, कै = कह, रै = रह, सै = सह (सहना)

बुढ़ापो

ओ दइया जो आओ बुढ़ापो।
मरवे खां तरसाओ बुढ़ापो।
करयाई नईं सूधी हो रई,
मजबूरी सी लाओ बुढ़ापो।
जो जाड़ो अब कैसे कटने,
पल्ली में भरयाओ बुढ़ापो।
बउएं लरका सब ललकारें,
फांसी-सी ले आओ बुढ़ाप।
मोरे रये से घर की सोभा,
बिगरे ऐसो आओ बुढ़ापो।
दो रोटी भी भारी हो गई,
विधना काय बनाओ बुढ़ापो।

खां = के लिए, करयाई = कमर, भरयाओ = भर आया, बउएं = बहुएँ

हओ मास्साब

काय रे लरको,पढ़ के आये ?
हओ मास्साब।
काय किसोरी, मिर्चें लियाए ?
हओ मास्साब।
काय चुन्नी, बाई से करेलन की कियाए ?
हओ मास्साब।
रामू, छितरा, हरदी, कूरा सबरे आये ?
हओ मास्साब।
मिड डे मील के चावरन की बोरी धर आये ?
हओ मास्साब।
मोरे घरे धर आये ?
हओ मास्साब।

काय रे = क्यों रे, लरको = लड़को, हओ = हाँ, मास्साब = शिक्षक, बाई = माँ, लियाए = ले आये, कियाए = कह आये, चावरन = चावल

प्रमान पत्र जाति को बन्ने

प्रमान पत्र जाति को बन्ने,
हमें बता दो का का कन्ने।
मौड़ा पढ़न जात नवोदा में,
ईके बिना काम नईं चलने।
बकील साब तुम बनवा तो दो,
नइँतर सबरी बात बिगन्ने।
सुन ले भैया राम औतार,
खर्चा तोखां परहे कन्ने।
पैला बन है आय निवास,
दूसरां फारम जाति को भन्ने।
तीन तीन सौ आय निवास के,
पाँच सौ रुपया जाति के धन्ने।
सरपंच पटवारी से दस्कत करा ले,
दो गवाय गाँव के कन्ने।
ग्यारा सौ रुपया मेज पे धर दे,
हर चार दिना में दौरा कन्ने।
इतनो गर जो कर देहे ता,\
घर बैठे तोय जाति मिलने।

बन्ने = बनना है, कन्ने = करना है, का = क्या, मोड़ा = लड़का, नवोदा = जवाहर नवोदय विद्यालय, ईके = इसके, नईं = नहीं, नइँतर = नहीं तो, बिगन्ने = बिगड़ना है, तोखां = तुझे, परहे = पड़ेगा, पैला = पहले, जाति = जाति प्रमाण पत्र, धन्ने = रखना है, दस्कत = हस्ताक्षर, गवाय = गवाह, देहे = देगा, तोय = तुझे

बुढ़िया की सलाह

वशेष :- कविता चौपाई छंद में लिखी गई है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राएँ होती हैं एवं अंतिम वर्ण दीर्घ होता है।

Story Credits: Amit Dwivedi

बात कहूँ इक सच पहिचाना। सुन लो पंचो तुम धरि काना।
जिलाधीश इक गजब सुभावा। एक विचार सहज उर लावा।
जन-मानस की बात जनाऊ। फेरी एक लगा के आऊँ।
निकल पड़े नहीं किया विलम्बा। घूमत जात सुमिर जगदम्बा।
पहुँच गए इक ग्राम समीपा। पहर दूसरा धूप असीमा।
लटकत ताले हर घर माही। सूनो लगत कोऊ नर नाहीं।
दीखे बालक चुनत निबौरी। जुर मिल सारे करत ठिठोली।
एक बालिका उम्मर छोटी। सीस धरे घट पहिरे धोती।
वृक्ष नीम का सुन्दर छाया। एक डुकरिया सेज बनाया।
सोई डुकरिया भूम कठोरा। पास रखा जल भरा कटोरा।
गाड़ी रोक दई जिलधीसा। निकरे बाहर पग धर सीसा।
माइ माइ कह माइ उठावा। झुके सहज सिर चरनन लावा।
बेटा अरे कहाँ से आया। उठी डुकरिया वचन सुनाया।
सबहि कमावन दिल्ली धाए। तुम का करत निकम्मे आये।
जिलाधीश मन में मुस्काया। हाथ जोर के वचन सुनाया।
मैं कलक्टर माइ अभागा। जान गया सब अंतर जागा।
बेटा सुन इक बात बताऊँ। तेरा भला तुझे समझाऊँ।
बात मान दस गुना कमाओ। इसकी लूटो उसकी खाओ।
हम जैसों पे रौब जमाओ। खून चूस निज महल बनाओ।
काम परै तो हाथ न आना। महिनन साल हमें भटकाना।
होत कमाई इसमे भारी। छोड़ कलक्टर बन पटवारी।

निबौरी = नीम के फल, डुकरिया = बुढ़िया, पग = पगड़ी, कमावन = कमाने के लिए, अंतर = अंतर्मन

मैं होती तो भर देती

आसों बाई खों पानी भरवो, जादा कार्रो पर गओ,
मैं होती तो भर देती।
आहा दइया जेठ मास में, अच्छो धमका पर गओ
मैं होती तो छाया कर देती।
बंधो-बंधो ऊ कारो बुकरा, जीब निकारें मर गओ,
मैं होती तो सानी धर देती।
तीन दिना से बिकट प्यासो, नटवा टलवा हो गओ,
मैं होती तो उसार कर देती।
बाई कात के खेंचत पानी, हाथ फफोला पर गओ,
मैं होती तो मल्लम भर देती।
ई देश के सिंहासन से, करुना भाव निकर गओ,
मैं होती तो भर देती।

लोक भजन

पिंजरा धरो इतइ रए जाने, पंछी उड़ जाने तत्काल।
नाते घरी भरे के लाने,
जे संग तोरे नई जाने;
आँखी मिंचत नज़र नई आने, माया को सबरो जंजाल।
पिंजरा धरो इतइ रए जाने, पंछी उड़ जाने तत्काल।
जो नित-नित होत पुरानो,
अरे,मरम न तेने जानो;
पिंजरा काये तोए मिठानो, जी में है नइयां सर-स्वाद।
पिंजरा धरो इतइ रए जाने, पंछी उड़ जाने तत्काल।
भीतर बैठी जोन चिरैया,
उको कछु भरोसो नइयां;
'परमा' मानत काये नइयां, भज ले बृजमोहन बृजलाल।
पिंजरा धरो इतइ रए जाने, पंछी उड़ जाने तत्काल।

दद्दा कात कछु न कइये

पानी छुओ सो उनने धुन दओ ,
दद्दा कात कछु न कइये।
कक्का जू ने चपटो कर दओ ,
दद्दा कात कछु न कइये।
दाऊ जू ने गल्ला धर लओ ,
दद्दा कात कछु न कइये।
उनकी भैंसन ने खितवा चर लओ ,
दद्दा कात कछु न कइये।
बड़े-बड़न ने मन को कर लओ ,
दद्दा कात कछु न कइये।
'परमा' कात के कब लो चल है ,
दद्दा कात कछु न कइये।

गल्ला = अनाज , खितवा = खेत , कात = कहते हैं , दद्दा = पिता जी , कइये = कहना

आरक्षण की नीति

बीजा तो डंगरन के बये ते,
जोन विषैले बौला भये ते,
ऐसो नकुअन दम हो गओ है बहुतै बेल बढ़ाई रे।
सवा डेवढ़ी मेनत कर रओ,
पउआ भर को फ़ल मिल रओ,
अरी व्यवस्था ऐसी तेने काय धरी निठुराई रे।
एक भेद में भेद डार के,
क़ाबलियत पे रेत डार के,
ऐसी-वैसी जुगत लगा के चकरी बुरइ चलाई रे।
जिने चाने उने न मिल रओ,
सबकी छतियन मूंग दर रओ,
आरक्षण की राजनीति ने खोद दई अब खाई रे।

डंगरन = खरबूजा, बौला = बेल, बये = बोए, ते = थे, नकुअन दम होना = परेशान हो जाना, मेनत = मेहनत, पउआ = एक चौथाई, चाने = चाहिए

देख के आया खंड बुंदेला

भूमिका : बुंदेलखंड उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है। यह क्षेत्र भारत के सबसे पिछड़े हुए इलाकों में से एक है जहाँ मुख्य रूप से तीन समस्याएं हैं - गरीबी, सूखा और इन दोनों से उत्पन्न पलायन की समस्या। कविता में बुंदेलखंड की मार्मिक स्थिति का वर्णन किया गया है।

विशेष : कविता को इस प्रकार छंद-बद्ध किया गया है कि पहली दो पंक्तियों और हर छंद की अंतिम दो पंक्तियों में २८ -२८ मात्राएँ है और बाकी प्रत्येक पंक्ति में ३० मात्राएँ हैं। कविता में सहजता से बुंदेली शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिनका शब्दार्थ नीचे संलग्न किया गया है।

अन्धकार की काली रजनी ,किंचित नहीं पुसानी।
देख के आया खंड बुंदेला , दारुण दुख रजधानी।

जीवन की कटु कठिन शुष्कता, देखी गीली आँखों से।
मुक्त विहग अब धरन चूमते, नित-नित कटती पाँखों से।
तुम भी देखो निर्मम हुलिया, भारत माँ निज जननी का।
अंधकार तो ज़रा भाँप लो, निर्धनता की रजनी का।
जो देखा जो अनुभव कीन्हा, उसकी करूँ बखानी।
देख के आया खंड बुंदेला, दारुण दुख रजधानी।

जर्जर-मैली-जीरन काया, मातु फिरत मजदूरी में।
कंडी बीनत मौड़ा-मोड़ी, डोलत ताप-ततूरी में।
प्यासी धरनी ने मुख खोला, चौपायों की खैर नहीं।
गली मुहल्ला सुने पड़ गए, किया पलायन भूम तजी।
ये जग-जीवन काठ पुतरिया, विधना रही नचानी।
देख के आया खंड बुंदेला, दारुण दुख रजधानी।

करन मजूरी प्रीतम कढ़ गए,आस लगी उन आवन की।
हाय ! कचोटे उन बिन रजनी, और बदरिया सावन की।
हाड़-मांस की बची पुतरिया, प्राण गए परदेसन में।
कागा बैरी आस बढ़ावत, उड़ि-उड़ि आवै आँगन में।
चातक प्राण फंसे मरु माहि, बूंद मिले नहि पानी।
देख के आया खंड बुंदेला, दारुण दुख रजधानी।

पुसानी = पसंद आना , जीरन = जीर्ण , कंडी = पशुओं का सूखा गोबर जो ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जाता है,
मौड़ा-मोड़ी = बेटा-बेटी , ततूरी = तपी हुई धरती पर नंगे पाँव चलने से होने वाली जलन, काठ पुतरिया = कठ-पुतली , मजूरी = मजदूरी , कढ़ गए = निकल गए

कुँवर साब की सगाई

कुँवर साब की भई सगाई , गाँव के सबरे नर आ जइयो।
दाऊ साब ने दावत रखाई , अनिवार्य हो सब जें जइयो।
उते न आके उनकी बुराई , अपने मूड़ पे तुम धर लइयो।
पंडित-बामन सबरे जुर के , मंगल-मंत्र तना पढ़ दइयो।
ग्राम-पंचयात के सबरे टैंकर , दरवाजे पे झट धर जइयो।
प्रीतिभोज में बड़े प्रेम से , सातऊ जातें भोग लगइयो।
मैंतर, बसोर और चमार भाई , तना दूर हो तुम खा लइयो।
खबरदार ! जे तीनऊ जातें , खा के दोना दूर कर दइयो।

जें = खाना /जीमना , उते = वहाँ , मूड़ = सिर , तना = थोड़ा /ज़रा , सबरे = सभी , जातें = जातियाँ , दोना = पत्तल /भोजन हेतु पत्तों से बनाया गया डिस्पोजल

Comments

  1. अति सुन्दर विश्लेषण मिला, हार्दिक धन्यवाद आपका।

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