सावनी
"सावनी वाले आएंगे आज। लड़कियों झाड़ू-वर्तन कर लो जल्दी से, मैं गोबर ले के आती हूँ। और सुन रे.. खेमचंद, चिल्ल-पों बिल्कुल नहीं चाहिए।" - माँ जल्दवाजी में कहते हुए सिर पे टोकरी रखकर फुरफुराती सी चली गई। उसके पास जैसे ज्यादा निर्देश देने का समय नहीं था। इधर मीरा और गुड्डन ने भी कह दिया - " हाँ माँ कर लेंगे, तू जा तो। दोनों का ध्यान तो चपेटा खेलने में था। खेमचंद कहीं से दौड़ता हुआ आया और दोनों के साथ बैठ गया। वह बहुत ध्यान से उनको चपेटा खेलते हुए देख रहा था। ऊपर जाते हुए गिट्टी के पत्थर (इस खेल में उस पत्थर का नाम चपेटा) को वो देखता तब तक गुड्डन नीचे चार पांच पत्थर (चपेटा) उठा लेती और खेमचंद की आंखें नीचे आने से पहले ही ऊपर का पत्थर गुड्डन के हाथ में होता। खेमचन्द की आँखों में चमक आ जाती। खेमचंद ने धीरे से कहा - "दीदी मैं भी खेलूँ तुम्हारे साथ?" दोनों में से किसी ने उत्तर न दिया। खेमचंद ने गुड्डन को हल्का सा धक्का देते हुए फिर पूछा। गुड्डन का ध्यान हटा और चपेटा उसके हाथ से गिर गया। उसने तपाक से एक तमाचा खेमचंद को जड़ दिया। खेमचंद दो-चार चपेटे उठा के रोटा हुआ भाग गया...