बुन्देलखंड जल संकट
धमका परो जेठ के मास, पानी टटम गाँव में नैयाँ। दस दस डब्बा साइकल टांगें चले जाट गैलारे। ओरन-ढोरन की न पूछो, फिर रए जीवन हारे। धरनी रए गई है मो फार, पानी टटम गाँव में नैयाँ। धमका परो जेठ के मास, पानी टटम गाँव में नैयाँ। हेंचत पानी परे फफोला, ढोवत गर्दन टूटी। सपने भी पानी के आवै, ऐसी किस्मत फूटी। 'परमा' इते जिओ ना जाए, पानी टटम गांव में नैयाँ। धमका परो जेठ के मास, पानी टटम गाँव में नैयाँ।