Posts

Showing posts from September, 2014

बुन्देलखंड जल संकट

धमका परो जेठ के मास, पानी टटम गाँव में नैयाँ। दस दस डब्बा साइकल टांगें चले जाट गैलारे। ओरन-ढोरन की न पूछो, फिर रए जीवन हारे।  धरनी रए गई है मो फार, पानी टटम गाँव में नैयाँ।  धमका परो जेठ के मास, पानी टटम गाँव में नैयाँ। हेंचत पानी परे फफोला, ढोवत गर्दन टूटी।  सपने भी पानी के आवै, ऐसी किस्मत फूटी।  'परमा' इते जिओ ना जाए, पानी टटम गांव में नैयाँ। धमका परो जेठ के मास, पानी टटम गाँव में नैयाँ।

पिंजरा धरो इतइ रए जाने

पिंजरा धरो इतइ रए जाने, पंछी उड़ जाने तत्काल। नाते घरी भरे के लाने, जे संग तोरे नई जाने; आँखी मिंचत नज़र नई आने, माया को सबरो जंजाल।  जो नित-नित होत पुरानो, अरे,मरम  न तेने जानो; पिंजरा काये तोए मिठानो, जी में है नइयां सर-स्वाद। भीतर बैठी जोन चिरैया, उको कछु भरोसो नइयां; 'परमा' मानत काये नइयां, भज ले बृजमोहन बृजलाल।