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Showing posts from May, 2015

कुँवर साब की सगाई

कुँवर साब की भई सगाई , गाँव के सबरे नर आ जइयो। दाऊ साब ने दावत रखाई , अनिवार्य हो सब जें जइयो।  उते न आके उनकी बुराई , अपने मूड़ पे तुम धर लइयो।  पंडित-बामन सबरे जुर के , मंगल-मंत्र तना पढ़ दइयो।  ग्राम-पंचयात के सबरे टैंकर , दरवाजे पे झट धर जइयो।  प्रीतिभोज में बड़े प्रेम से , सातऊ जातें भोग लगइयो।  मैंतर, बसोर और चमार भाई , तना दूर हो तुम खा लइयो।  खबरदार ! जे तीनऊ जातें , खा के दोना दूर कर दइयो।  जें = खाना /जीमना , उते = वहाँ , मूड़ = सिर , तना = थोड़ा /ज़रा , सबरे = सभी , जातें = जातियाँ , दोना = पत्तल /भोजन हेतु पत्तों से बनाया गया डिस्पोजल  

देख आया खंड बुंदेला

भूमिका :  बुंदेलखंड उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है। यह क्षेत्र भारत के सबसे पिछड़े हुए इलाकों में से एक है जहाँ मुख्य रूप से तीन समस्याएं हैं - गरीबी, सूखा और इन दोनों से उत्पन्न पलायन की समस्या। कविता में  बुंदेलखंड की मार्मिक स्थिति का वर्णन किया गया है। विशेष :  कविता को इस प्रकार छंद-बद्ध किया गया है कि पहली दो पंक्तियों और हर छंद की अंतिम दो पंक्तियों में २८ -२८ मात्राएँ है और बाकी प्रत्येक पंक्ति में ३० मात्राएँ हैं। कविता में सहजता से बुंदेली शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिनका शब्दार्थ नीचे संलग्न किया गया है। अन्धकार की काली रजनी ,किंचित नहीं पुसानी। देख आया खंड बुंदेला , दारुण दुख रजधानी। जीवन की कटु कठिन शुष्कता, देखी गीली आँखों से। मुक्त विहग अब धरन चूमते, नित-नित कटती पाँखों से। तुम भी देखो निर्मम हुलिया, भारत माँ निज जननी का। अंधकार तो ज़रा भाँप लो, निर्धनता की रजनी का। जो देखा जो अनुभव कीन्हा, उसकी करूँ बखानी। देख आया खंड बुंदेला, दारुण दुख रजधानी। जर्जर-मैली-जीरन काया, म...

भारत के रंग (Colors of India)

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