जो यहाँ न समाते हैं
छंद : कवित्त आते जो यहाँ हैं, नीचे तबके का दुख लिए, हिन्दू के विचार में, वो मोल नहीं पाते हैं। भंजक बल फैलते हैं, एकता से खेलते हैं, उन्ही को वो खींचते, जो यहाँ न समाते हैं। खुद को जो हिन्दू कहें, निज में न माने इन्हे, ये जो रुख मोड़ दें तो, घोर गरियाते हैं। -परमानंद