ऐसी होली खेल
न रंग चढ़े मोहे श्याम तुम्हारा ,न चढ़ पावै दुनिया का। ऐसी होली खेल मेरे संग ,रंग चढ़े बस माटी का। राष्ट्र-प्रेम की भंगिया पीकर , उसी प्रेम की फागें गाऊँ। तीन रंग मुझ में घुल जावैं ,तीन रंग में मैं घुल जाऊँ। -परमानंद