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ऐसी होली खेल

न रंग चढ़े मोहे श्याम तुम्हारा ,न चढ़ पावै दुनिया का।   ऐसी होली खेल मेरे संग ,रंग चढ़े बस माटी का।   राष्ट्र-प्रेम की भंगिया पीकर , उसी प्रेम की फागें गाऊँ।   तीन रंग मुझ में घुल जावैं ,तीन रंग में मैं घुल जाऊँ।                                                                                                                -परमानंद 

पचमढ़ी

जब इम्तिहान सर होते है, जब पुलक कहीं खो जाती है। जब निशा चिरौरी करती है, जब उषा धमक दहलाती है। जिस-बीच परीक्षा पर-इच्छा से कृष्ण रात सी छाती है। पचमढ़ी उदित हो नागमणी सी, तू दस्तक दे जाती है।