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Showing posts from December, 2012

वो मुरली की धुन

हमरे कान नहीं लग पाई , वो मुरली की धुन कान्हां  । तेरे बिना   ओ श्याम हमारे मधुवन मधुवन ना लागे ।  पनघट भी है गगरी भी है पर जीवन कछु फीकौ लागै । सुन्दर गोपी प्यारी गैया, अरू गोपाला सबै बुलाबै । भाग अभाग  भए गगरी के कान्हां के कंकण  ना लागै । होरी आवै रंग उडै सब ,पर कान्हां से रंग कौन लगावै  । आज के रंग के भाग  कहाँ ,जो कान्हां के अंग को रंग पावै । यमुना के  जल को मुक्त किया,कालिया को मर्दन कर डारो । वही दशा भई आज कन्हैया यमुना पे निज चितवन डारो । करखानन के  नाग ने ,यमुना में फिर से विष डारो । कालिया-मर्दन फिर से कर जा ,ओ कान्हां तुम पुनः पधारो । कान्हां से ना रहे ग्वाला ,राधा सी गोपी नहीं पाई । पावन प्रेम पे दाग लगे अब  ,अरे कन्हैया करो सहाई ।                                                               -परमानन्द 

हिंदी मेरी माँ है 

एक सज्जन है प्रिये मित्र हमारे । अंग्रेजी के मद से मारे । बोले "एक्सक्यूज मी " ;क्या हिंदी हिंदी करते हो । हिंदी में क्या धरा है ?  -जो इसकी पूजा करते हो । अरे पू जा करनी है तो अंग्रेजी की करो जो जानी मानी है । अंग्रेजी वो मदहोश जवानी है,जिसक दुनिया दीवानी है । अरे अंग्रेजी बड़प्पन की निशानी है, और हिंदी छप्पन की । अंग्रेजी सभ्यता की भाषा है और हिंदी गप्पन  की । अंग्रेजी में बोलो तो तुम्हारा ग्यान पसरा सा लगता है । और हिंदी में बोलो तो वाही ग्यान सिकुड़ा सा लगता है । मैंने कहा मित्र !आपकी सलाह को मेरा सलाम है । और अंग्रेजी को भी शत-शत प्रणाम है । पर क्या करू मित्र हिंदी मेरी अभिलाषा है । मेरे लिए अरे सुजान !हिंदी ममता की परिभाषा है । मेरे लिए हिंदी माँ का हाथ है, जो दुआओं में सिर  पर फिरता है । मेरे लिए हिंदी माँ की गोद है ,जहां सिर रखने  का मन करता है । हिंदी में वो ममतामयी आज है ,जो भोजन के लिए बुलाती है । हिंदी में वो मीठी-सी लोरी है ,जोभर के प्यार सुलाती है । हवा चल गई आज हिन्द में ,कि अंगेजी से सारा जहां है । पर ऐसे  नहीं छ...