अजातशत्रु
छंद- सरसी छंद संरचना - १६,११ १६,११ अंत में गुरु-लघु (sl ) मैं मृदुवाचक बना हुआ था ,अंत: कपट समाय | अजातशत्रु मैं खुद को समझू ,छाती दंभ छिपाय | श्याम सखा अन्दर से बोला , काहे फूला जाय | क्रोध,मोह,आलस्य,दंभ-से,रिपु को भूला जाय ||1|| अजातशत्रु तू तभी बने जब ,क्रोध क्षमा बन जाय | नादानी के अपराध सहे ,खड़ा-खड़ा मुस्काय | अजातशत्रु तू तभी बनेगा ,मोह बने जब त्याग | वंचित को अपने हिस्से से ,सौंपेगा कुछ भाग ||2|| अजातशत्रु तू तभी बने जब ,आलस हो असहाय | किस्मत के अभिलेख भूलकर ,कर्म ध्वजा फहराय | मधुसूदन का कर्म-संदेसा ,जन-जन तक पहुचाय | वही निर्भय हो भाग्य रेख से ,रिपु-विहीन कहलाय ||3|| 'दंभ नहीं ' - इस दंभ में खोय , दंभ करे तू घोर | प्रेम ...