सुधियाँ जो सुहानी नहीं
जो बीत जाता है उससे न जाने क्यों लगाव हो जाता है. नवोदय में विद्यार्थियों को न तो कोई अधिकार है न ही उनकी कोई सुनता है. यह जानते हुए भी कि मेस उनका हक़ है वे इंसानों के खाने लायक खाना बने इसके लिए नहीं बोल सकते. अगर बोलते हैं तो वे दंगे करने वाले कहलाते हैं. जबकि होना ये चाहिए कि शिकायत पर सुधार हो. पर शिक्षक गण कभी शायद ये नहीं सोच पाते कि जिस प्रकार उनकी संतानों कोअच्छा खाने का हक़ है वही हक़ विद्यार्थियों का भी है.मुझे याद है कई बार मुझे कई शिक्षकों ने बोला है-"पोहे में कोक्रोच दिखाते हो कभी घर पे खाया है निम्बू डाल के पोहा? कभी घर पे पनीर खाई है?" और ये सब सच होने के कारण मुझे लगता था कि जो मिल रहा है खा लेना चाहिए ये स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन हम जैसे भूखे नंगों पे उपकार कर रहा है. मुझे क्या पता था कि विद्यालय प्रशासन ऐसा इसलिए कर रहा है कि विद्यार्थी आवाज न उठायें और मन का धन किया जा सके. अभिभावक गण भी सोचते हैं कि शिक्षक उनके बच्चे की शिकायत कर रहे हैं तो बच्चा उद्दंड ही होगा. और दूसरी बात अभिभावकों को धमकी भी दी जाती है TC देने की अतैव फाइन के नाम पर हजारों पैसे भी वसूल लिए ज...