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Showing posts from November, 2012

युवाओं से

जग जीवन में जंग छिड गई ;तरकश तीर कमानी की।  ध्वज फहरा दो आज विजय का ;लेकर तोप जवानी की।  शिरा -धमनिया दृढ रख कर के ;रूधिर की रफ़्तार बढ़ा दो।  खबरदार ! अब ध्यान न डोले ; लक्ष्य में अपनी आँख गड़ा दो।  तीर नुकीले  बरस   रहे    है  ;झट प्रत्यंचा तुम्ही चढ़ा लो।  नहले    पे    दहले    है देना ;रण   में छाती  आज अड़ा दो।  डर मत जाना खून बहे जब ;नदिया   जैसे   पानी    की।  ध्वज फहरा दो आज विजय का ;लेकर तोप जवानी की।  क्यों भूल गए सब कुछ यारो ;कुछ याद करो, कुछ याद करो।  असीम शक्ति के निज सागर से ;कहो हिलोरे आज भरो।  अंत:     में    पसर    गया    है ; उस डर को तुम दूर करो।  तुम पे नजर टिकी भारत की ; दुखिओं   के   संताप   हरो।  भ्रमर  छोड़ दो मोह फूल का  ;बहुदिन से मनमानी की।  ध्वज फहरा दो आज विजय का ;लेकर तोप जवानी की।  कमर कसी  है मैंने अपनी ;...

वाणी में अमृत भर दे माँ

जीवन में इतना कर दे माँ ,वाणी में अमृत भर दे माँ  !                   बीज डाले थे तूने जो रस के,उन बीजों को अंकुर कर दे माँ  !                   वाणी में अमृत भर दे माँ ! नए पुष्पों की बगिया सुन्दर ,वाणी होवे   ज्ञान समुंदर ! हिन्द गुलिस्तां गुल खिल जाये ,इत्र सुगन्धित सात समुंदर ! नए फागुन का नया सवेरा ,भारतवर्ष  में कर दे माँ !       वाणी में अमृत  भर दे माँ  ! माँ !बचपन को याद   दिला दे,असली  बचपन क्या है !  बाल - सुलभ सब खेल कहाँ गए ,क्यों नित सकुचाती त्रिज्या है ? वो जल बरसा दे जिसमे ,कागज की किस्ती चल दे माँ !                    वाणी में अमृत  भर दे माँ  ! क्यों है इतना शोर हो रहा है ,नहीं सुनाई कुछ देता ! नन्ही बेटी की मृदु वाणी को ,कुचल ज़माना क्यों देता ? उस प्यारे -से भोलेपन का ,अब उजियारा कर दे माँ ! ...

विलाप क्यों

असफलताओं  से विक्षिप्त पुरुष ,किसका रोना रोता है।  करमो मे जो जंग लग गए,क्या करुणा से उनको धोता है।   खोल के आँखे देख ज़रा तू,है प्रश्न-दल से घिरा हुआ।  तू ही चीख रहा तेरे अंदर,न सुन पाता! क्या बहरा हुआ? बोए क्या तूने थे विचार के, उत्तम उपचारित बीज नए? क्यों आशा मे है नव अंकुर की, दिन सात गए तुम सठ भए।   हाँ ! कि उत्तर हाँ मे था ,और अंकुर अपनी थां पे था।  तो बता मुझे ओ मलिन कर्म ! सींचा क्या उसको जाँ से था? तू नही सिंचाई कर पाया पर, करूंणामय बादल को झरते देखा।  हवा बसंती की लहरों को , फसलों मे भरते देखा।  तू भूल गया जीवन के सुंदर , और रंगीन नज़ारो मे।   तू भूल गया ,तू भटक गया , कलिओं की मस्त बहारो मे।   तू गया तो था खेतों पर बसने , रक्षा करने निज फसल की।    बड़ी देर भई ओ मनमौजी , बनी शिकार वो पशुदल की।  अब बैठ अकेले सिर लटकाए , बर्बादी मे रोता है।   "क्यो दर्द दिया मुझको ईश्वर",आज दुहाई देता है।   देख उठा उपर सिर को , किसका हाथ रखा सिर पर।  किसके आँसू ने सहलाया तुझको, तेरे क...

प्रियतमा

चन्दन की खुसबू सी प्रिए तुम ;हवा में घुल के आती हो।  लिए   बहारे    ऋतुराज   की   ;जग   में  घु ल जाती हो।  सुध  आते  ही मधुर पलों की  ;रोम-रोम   झुमा    मेरा।  पूनम की शीतल रजनी तुम  ;फागुन का हो पाक सवेरा। याद तुम्हारी सावन की रिमझिम ;कभी बरसने लग जाती।  चातक बना पुकारूँ तुमको  ;तुम  बादल   सी छा  जाती।  कविओं की तुम कविता हो ; गायक   की  आवाज  प्रिये।  तुम चित्रकार का चित्र अजब हो ;कीमत है   बेमोल प्रिये।  यौवन  गागर  धरें  गुजरिया ;ज़रा सम्हल के चल प्यारी।  व्यर्थ न छलका गागर का जल ;भींग रही  नाजुक  साड़ी।  इस जल से ही हरा भरा है ; जग जीवन का सुन्दर उपवन। माली  को  है  गंध    फूल   की ;भ्रमर   करे   अंत:स्यंदन                                        ...