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Showing posts from February, 2013

जग-गोकुल

जब सहज भाव की कलकल होती ; मन-यमुना के तीरे । ऐसो लागै श्याम पधारे  छुप के देख सखी रे । ओ मद-मस्त हवा , सुन कान लगा ; ज़रा सम्हल के जाना । तेरी आहट  से कहीं श्याम को; कोई भनक ना देना ।  देख ज़रा उन पुष्पों को , उस निर्मल सी शबनम को । शायद कान्हा वहाँ छिपा है, देख पात की थिरकन को। देख की शायद लुका कन्हैया  , नवजात शिशु की मुस्की में । भावना से ली जाय अगर तो, कान्हा चाय की चुस्की में । मधुवन, उपवन, सावन , रिमझिम , किसलय , कुसुम और वृक्ष लता में । नटखट नन्द-कुमार छुपा है , जीवन की इस चंचलता  में । मत सोच कि  कान्हा लुप्त हुआ  अब, वृन्दावन से गोकुल से । सारा जग अब गोकुल है रे, बाहर  झाँक ज़रा संकुल से । माँ की मधुमय वाणी से, जब गोपाल नजर तू आयो  रे । परमानन्द के श्याम सखा ! तब उर आनंद समायो  रे ।                               ---परमानंद 

मनवा अरमाँ ढह गयो रे

मनवा अरमाँ  ढह गयो रे ! हरि आये थे तोरी नगरिया ,तें सोवत रह गयो रे । मुख-मंडल  की  शीतल  आभा ,देख  न  पायो रे । पट-पीताम्बर    पड़ो    लखाई , पीछू    धायो   रे । सुध-बुध   हरने   वाली   मुरली ,न   सुन  पाई रे । पडा   रहा   तू   अरे   बावरे ,  तमस   समाई   रे । बौर ,कुसुम अरू किसलय से हरि ,देह सजाई रे । कोयल   कूक  बनी  मुरली ,हरि  मधुर बजाई रे । ऐसो   सुगर  सलोनो   प्यारो ,श्याम  न  देखो रे । मूरख   परमानंद   हरि   को , मोल   न  लेखो रे । 

समय जगाने आ गया

चीख-चीत्कार को , घोर अन्धकार को , नव प्रभात खा गया । समय जगाने आ  गया ।                    वनिते ! देख ज़रा ; आसमान साफ़ है । अंशुमन की लालिमा से  पूर्व का क्षितिज भरा । माँ की कोख में तुझे , अब कोई डर नहीं ।                     हत्यारों के हाथ की ,                         खैर अब नहीं रही ।                     किलकारियों से बेटियों की, सुख-वितान छा गया । समय जगाने आ गया । जमाने से न त्रिये डर , सामना ह्रदय से कर । तुझमे लक्ष्मीबाई है, वीरांगना अवंतिका । और दूजी ओर तू ही , प्रेम-पूरित लतिका । प्रेम के बदले ए बसंत , प्रेम ले के आ गया । समय जगाने आ गया । ...