सीता की याद: भाग २ (क्रोध)
सके जान न राम अचानक, खेद क्रोध में बदल गया। भीषणता धधकी-भभकी, धर रौद्र काल ज्यों जल गया। खिंचने लगी भृगुटि राम की, रक्त उबाल लगा भरने। भुजगेश बने, फुंफकार भरी, जग त्राहि-त्राहि लगा करने। दिनकर का जैसे रथ टूटा, इक क्षण भर की ही देरी में। ज्वालामुखी उद्विग्न हो उठे, हुई रात प्रलय की भेरी में। खौल रहे नदियाँ-निर्झर, अब डोल रहा अंचल-अंचल। पृथ्वी से नभ, नभ से भू तक, बेचैन निरंतर दौड़ रहा जल। पवन जगाता अलख नज़ारे, ...