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Showing posts from June, 2015

नैनन की हुसियारी

आज लड़ी उनसे अखियाँ, सखियाँ बतियाँ कर जान निकारी।  गागर आज भई हलकी, छलकी उमगी भरजोर हुलारी।   बोल न बोल गए बलमा, बस नैनन तौल भई बनियारी।  लूट गओ हम खों बनिया, कर नैनन की हलकी हुसियारी।                                                                           -परमानंद  बनियारी = व्यापार, बनिया = व्यापारी 

सपरावत खीझ परी महतारी

पृष्ठभूमि:- आज भी वो दिन याद आ जाता है जब अम्मा बचपन में नहलाती थी। छंद:- मालती सवैया धूसर अंग धरे करिया, बनियान तने मल सी कर डारी। खेलत धूलि न भाँय करै, रत नाहिं घरै दिन-भोर-दुपारी। बाप दुलार बिगार  दिए, न उसार करे बनवै अधकारी। ऊ दिन खों अब याद करों, सपरावत खीझ परी महतारी।                                                                         -परमानंद  धूसर = धूल से सने, तने = तूने, भाँय = होश, रत = रहता, उसार = सेवा, खों = को, सपरावत = नहलाती, महतारी = माँ 

अपनी सजनी यह है परपाटी

पृष्ठभूमि:- रोड का काम प्रारम्भ होते ही मजदूर समुदाय में आशा जाग उठी। छंद:- मालती सवैया रामपुरा अब रोड डरे, चल री चल खोद भरें कछु माटी। काम करे कछु बात बने, अब भूखन जात न उम्मर काटी। राज लगे उनखों जिनकी, धन दौलत है जन की बरबादी। हाड़ गला नस खून बना, अपनी सजनी यह है परपाटी।                                                                        -परमानंद रामपुरा = एक गाँव का नाम, उनखों = उनको, हाड़ गला = हड्डियाँ गलाना 

लोहगढ़ किला भ्रमण प्रस्ताव

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Click  here  for English मित्रो, २० जून २०१५ को लोहगढ़ किला भ्रमण का निम्नलिखित प्रस्ताव रखता हूँ - संक्षिप्त जानकारी   किला  : लोहगढ़ क्षेत्र     : लोनावला ऊंचाई : 3389 फ़ीट ट्रेक     : सहज  अवस्थिति  लोहगढ़ का इतिहास  सातवाहन, चालुक्य, राष्ट्रकूट, यादव, मुग़ल और मराठों की गाथा समेटे हुए लोहगढ़ का एक लम्बा इतिहास है। इस किले को छत्रपति शिवाजी ने 1648 ई. में जीता लेकिन 1665ई. की पुरंदर की संधि में शिवाजी को यह किला मुग़लों को दाना पड़ा। 1670 में छत्रपति ने पुनः लोहगढ़ को जीता और इसके बाद इस किले का इस्तेमाल उन्होंने अपना खजाना रखने के लिए किया।  प्रस्तावित भ्रमण योजना  06:14 पूर्वान्ह - ठाणे से  इंद्रायणी एक्सप्रेस  पर सवार 08:00 पूर्वान्ह - लोनावला  10:00 पूर्वान्ह तक - स्वल्पाहार करके  भाजा कंदराओं  का भ्रमण  10:00 पूर्वान्ह - लोहगढ़ वाड़ी से किले का आरोहण प्रारम्भ  12:00 अपरान्ह - किले पर  02:00 अपरान्ह - अवरोहण प्...

आसुन आँस गई कतकी

विशेष :-  मालती सवैया नामक छंद का प्रयोग जिसमें सात भगण  ( S I I)  एवं अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं। आसुन आँस गई कतकी, रब ने सजनी अब बादर फारे। जात किते अब खात किते, सनतान किते अब पालत बारे। सूद बढ़ै दिन रात अरी, जनु चाँद बढ़ै रजनी उजियारे। बीज बहाय लिए बरखा, सब नास कियो हरि पालनहारे। आसुन = इस वर्ष, आँस गई = खटक गई, कतकी = खरीफ की फसल, किते = कहाँ, सनतान = संतान, बारे = बालक 

हिम के पथरा

विशेष :-  मालती सवैया नामक छंद का प्रयोग जिसमे सात भगण  ( S I I)  एवं अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं।  बादर से हिम के पथरा, बरसे हिरदे जब मार कटारी।  चारउ ओर भई चपटी, फसलें झकझोर सपट कर डारी।  ढोरन गातन खून बहै, कछु चोटन से दिहिया तज डारी।  थारन मूड़ ढके दुबके, 'परमा' अब रूठ गओ गिरधारी।  बादर = बादल, पथरा = पत्थर, चारउ = चारों, ढोरन = पशुधन के, गातन = अंगों में, चोटन = चोटों से, दिहिया = शरीर/देह, थारन = थालियों से, मूड़ = सिर

सजना बरयाने

पृष्ठभूमि:-  बुंदेलखंड के उस मजदूर परिवार की कल्पना करें जिसका मुखिया शराब पीता है और यहीं से जन्म लेती हैं गरीबी, भूख और घरेलू हिंसा जैसी गंभीर समस्याएँ। विशेष:-  प्रस्तुत छंद मालती सवैया है जिसके प्रत्येक चरण में सात भगण ( S I I)  एवं अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं। खोरन ठोकर खात फिरै, ढुलकै-लुढकै नहि होस ठिकाने। रंजित नैनन खून चढ़ो, पतलून धरे सब कीच भिड़ाने। मारत, डारत तेल सखी, नहि लाज रखै सजना बरयाने। देख सराब खराब बला, 'परमा' अनवास न भौत खटाने। खोरन = गलियन, भिड़ाने = लथपथ, बरयाने = पागल हो जाना, अनवास = उपयोग करना/सेवन करना, खटाने = जिन्दा रहना

आमचरितमानस (परमा अमृतवाणी)

दोहे  १) परमा खड़ा बज़ार में, ताकै चारों ओर।      ये नर लड़की ताक के, कभी न होता बोर।  २) यों परमा सुख होत हैं, स्टॉकर के संग।       हर फोटो देखत ह्रदय, बाजत ढोल मृदंग।   ३) साईं इतना दीजिये, जासै कुटुम दिखाय।       मैं भी सिंगल ना रहूँ, खर्चा भी बच जाय।  ४) इन्फी प्रोफाइल देख के दिया स्टॉकर रोय।      उसकी नज़र के सामने, सिंगल बची न कोय। ५) सिंगल देखन मैं चला, सिंगल न मिलिया कोय।       जो दिल खोजा आपनो, मुझ-सा सिंगल न कोय।  ६) बंदी ढूंढत जुग गया, फिरा न मनका फेर।       परमा जो अब ढूंढ़ ली, गई कहीं मुख फेर।  ७) स्टॉक कर-कर जग मुआ, कमिटेड हुआ न कोय।       दुइ आखर 'डूड' का, पढ़े सो कमिटेड होय।  कुण्डलिया  धरना देते द्वार पर, बैठे पीकर भांग।  सारे सिंगल कर रहे, आरक्षण की मांग।  आरक्षण की मांग, कमिटेड की सुन लीजै।  मारे इन्फी फाइट, चान्स उसी को दीजै।...

बेलापुर वाली

"नई बहु जा कैसी आई, हरपरसाद की घरवाली। आड़ करे न मरजादा, मौ काढ़े बेलापुर वाली। आदी राते हरपरसाद खावै, पैला खा ले बेलापुर वाली। खात में सबरी रोटी छू लई, बड़ी असद्दन बेलापुर वाली। गोबर करे से हाथ बसावै, रगड़ धोये बेलापुर वाली। सेम्पुअन से केस धुव रये, बड़ी बनत बेलापुर वाली। जेठ ससुर से सूदी बोलत, का है करैयाँ बेलापुर वाली। बउएं बिलुर गईं पढ़ लिख कें. सो बिगरी बेलापुर वाली।" - बउअन पे जो इतने बंधन, का करे बेलापुर वाली। को 'परमा' बरबाद हो रओ, जो समाज या बेलापुर वाली।                                                                          -परमानंद नई = नई (नया), नईं = नहीं, जा = यह, मौ = मुंह, असद्दन = अशुद्ध, बिलुर/बिगर = बिगड़, बउएं/बउअन = बहुएँ/ बहुओं, 

असाढ़ की पैली बुंदियाँ

पैली बेर को ऐसो बरसो, सबरो जिया जुड़ा गओ तरसो। बीज करो सरजू की अम्मा, भ्याने नईं तो बै दें परसों। भैसें बाँध देव बहार खों, जुड़ा जान दो उने भीतर सों। पर को बीज अब धरो कां है, डेओढ़ लगी न, बीते बरसों। तिली मूंग कतकी ने खा लए, चैती लील गई सब सरसों। हर साल सो हर न रावै, हाथ जोर कै दो हर सों।                                                         -परमानंद पैली बेर = पहली बार, जुड़ा = ठंडक, भ्याने = कल सुबह, बै = बुआई, कां = कहाँ, कतकी = खरीफ की फसल, चैती = रबी की फसल, हर = प्रत्येक/हल/हरि (ईश्वर), रावै = रहे 

सुख

नोट : कठोपनिषद् के प्रथम अध्याय की प्रथम वल्ली में नचिकेता द्वारा यमराज को दिए गए उत्तर से प्रेरित। Note : Inspired by Nachiketa's answer to Yamraj, Kathopanishad,Chapter-1, Valli-1 सुख तो भइया दूर के बाजे, दूरई दूर पुसावै रे। इनके पाछू लग कें देखो, हाथ न तनकउ आवै रे। बर्रोलन में ज्यों बर्रोली, त्यों जग सत्य कहावै रे। माया की जा सुखद बर्रोली, जो न साँच दिखावै रे। सुख के साधन जोर जोर कें, हमें न कभउ अघाने रे। पल में सबई अलोप हो जाने, जबई गटा मुंद जाने रे।                                                                  -परमानंद पुसावै = पसंद आना, तनकउ = तनिक, बर्रोली = सपना, साँच = सच, कभउ = कभी, अघाने = तृप्त होना, अलोप = गायब, गटा = नेत्र, मुंद जाने = बंद हो जायेंगे

बड़े पावने भौत नसाने

ठेका वारी दारू पीके, बड़े पावने भौत नसाने। डरे रात कउ नाली मेंहा, होंस कछु न रात ठिकाने। हम तो सांसू कै-कै हारे, बात सुने न एकउ माने। बिटिये मारे, बार उखारे, कभउँ पकर उन्ना दे ताने। रकम कमाबे की कोउ काबे, सौ-सौ हीला करे बहाने। बड़े दुखन से बिटिया रै रई, सांसू एक न देत उराने। निभा-निभा के सबरो सै रई, बड़े पावने भौत नसाने।                             -परमानंद पावने = दामाद, कउ = कहीं, मेंहा = में, भौत = बहुत, नसाने = बिगड़े, सांसू = सच्ची, कै = कह, रै = रह, सै = सह (सहना)

बुढ़ापो

ओ दइया जो आओ बुढ़ापो। मरवे खां तरसाओ बुढ़ापो। करयाई नईं सूधी हो रई, मजबूरी सी लाओ बुढ़ापो। जो जाड़ो अब कैसे कटने, पल्ली में भरयाओ बुढ़ापो। बउएं लरका सब ललकारें, फांसी-सी ले आओ बुढ़ापो। मोरे रये से घर की सोभा, बिगरे ऐसो आओ बुढ़ापो। दो रोटी भी भारी हो गई, विधना काय बनाओ बुढ़ापो।                                     -परमानंद खां = के लिए, करयाई = कमर,  भरयाओ = भर आया, बउएं = बहुएँ

पठा में

बड़ी खुसी की बात भइया, रेलगाड़ी आई पठा में।  गड्ढा खुद गए पानी हो गओ, फसलें खूब लगाईं पठा में। बिलात नासनी दारु हो गई, पुलस की चौकी आई पठा में। ई दारु से नकुअन दम है, जा कीने फैलाई पठा में। माव-पूस में जाड़ो पर गओ, धुंधई धुंध सी छाई पठा में। दिन रात किसान ने मेनत कर कें, हरियाली फैलाई पठा में। ऋतुराज की रजधानी-सी, सुंदरता बरसाई पठा में। ऐसो दिन हमने न देखो, जब फसलें मुरझाई पठा में। जिदना घूमो उदना जानो, भौतई लगी बराई पठा में। तातो-तातो गुर मिल गओ सो, पिकनिक उते मनाई पठा में। मिल-जुर कें सब रैवे वारे, खुसी फसल लहराई पठा में।  मिटै समाज को बैरी जीने, छुआ छूत फैलाई पठा में।                                                                      -परमानंद पठा = एक गाँव का नाम, बिलात = ज्यादा, नासनी = नाश करने वाली, कीने = किसने, जिदना = जिस दिन, उदना = उस दिन, बराई = ईख (गन्ना), ता...

हओ मास्साब

काय रे लरको,पढ़ के आये ? हओ मास्साब।  काय किसोरी, मिर्चें लियाए ? हओ मास्साब।  काय चुन्नी, बाई से करेलन की कियाए ? हओ मास्साब।  रामू, छितरा, हरदी, कूरा सबरे आये ? हओ मास्साब।  मिड डे मील के चावरन की बोरी धर आये ? हओ मास्साब।  मोरे घरे धर आये ? हओ मास्साब।                           -परमानंद  काय रे = क्यों रे, लरको = लड़को, हओ = हाँ, मास्साब = शिक्षक, बाई = माँ, लियाए = ले आये, कियाए = कह आये,  चावरन = चावल 

प्रमान पत्र जाति को बन्ने

प्रमान पत्र जाति को बन्ने, हमें बता दो का का कन्ने। मौड़ा पढ़न जात नवोदा में, ईके बिना काम नईं चलने। बकील साब तुम बनवा तो दो, नइँतर सबरी बात बिगन्ने। सुन ले भैया राम औतार, खर्चा तोखां परहे कन्ने। पैला बन है आय निवास, दूसरां फारम जाति को भन्ने। तीन तीन सौ आय निवास के, पाँच सौ रुपया जाति के धन्ने। सरपंच पटवारी से दस्कत करा ले, दो गवाय गाँव के कन्ने। ग्यारा सौ रुपया मेज पे धर दे, हर चार दिना में दौरा कन्ने। इतनो गर जो कर देहे ता, घर बैठे तोय जाति मिलने। बन्ने = बनना है, कन्ने = करना है, का = क्या, मोड़ा = लड़का, नवोदा = जवाहर नवोदय विद्यालय, ईके = इसके, नईं = नहीं, नइँतर = नहीं तो, बिगन्ने = बिगड़ना है, तोखां = तुझे, परहे = पड़ेगा, पैला = पहले, जाति = जाति प्रमाण पत्र, धन्ने = रखना है, दस्कत = हस्ताक्षर, गवाय = गवाह, देहे = देगा, तोय = तुझे

बुढ़िया की सलाह

वशेष :-  कविता चौपाई छंद में लिखी गई है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राएँ होती हैं एवं अंतिम वर्ण दीर्घ होता है। Story Credits: Amit Dwivedi बात कहूँ इक सच पहिचाना। सुन लो पंचो तुम धरि काना। जिलाधीश इक गजब सुभावा। एक विचार सहज उर लावा। जन-मानस की बात जनाऊ। फेरी   एक   लगा   के   आऊँ। निकल पड़े नहीं किया विलम्बा। घूमत जात सुमिर जगदम्बा। पहुँच गए इक ग्राम समीपा। पहर दूसरा धूप असीमा। लटकत ताले हर घर माही। सूनो लगत कोऊ नर नाहीं। दीखे बालक चुनत निबौरी। जुर मिल सारे करत ठिठोली। एक बालिका उम्मर छोटी। सीस धरे घट पहिरे धोती। वृक्ष नीम का सुन्दर छाया। एक डुकरिया सेज बनाया। सोई डुकरिया भूम कठोरा। पास रखा जल भरा कटोरा। गाड़ी रोक दई जिलधीसा। निकरे बाहर पग धर सीसा। माइ माइ कह माइ उठावा। झुके सहज सिर चरनन लावा। बेटा अरे कहाँ से आया। उठी डुकरिया वचन सुनाया। सबहि कमावन दिल्ली धाए। तुम का करत निकम्मे आये। जिलाधीश मन में मुस्काया। हाथ जोर के वचन सुनाया। मैं कलक्टर माइ अभागा। जान गया सब अंतर जागा। बेटा सुन इक बात बताऊँ। तेरा भला तुझे समझाऊँ। बात मान दस गुना कमाओ। इसकी लूटो...

मैं होती तो भर देती

आसों बाई खों पानी भरवो, जादा कार्रो पर गओ, मैं होती तो भर देती। आहा दइया जेठ मास में, अच्छो धमका पर गओ, मैं होती तो छाया कर देती। बंधो-बंधो ऊ कारो बुकरा, जीब निकारें मर गओ, मैं होती तो सानी धर देती। तीन दिना से बिकट प्यासो, नटवा टलवा हो गओ, मैं होती तो उसार कर देती। बाई कात के खेंचत पानी, हाथ फफोला पर गओ, मैं होती तो मल्लम भर देती। ई देश के सिंहासन से, करुना भाव निकर गओ, मैं होती तो भर देती।

दद्दा कात कछु न कइये

पानी छुओ सो उनने धुन दओ , दद्दा कात कछु न कइये। कक्का जू ने चपटो कर दओ , दद्दा कात कछु न कइये। दाऊ जू ने गल्ला धर लओ , दद्दा कात कछु न कइये। उनकी भैंसन ने खितवा चर लओ , दद्दा कात कछु न कइये। बड़े-बड़न ने मन को कर लओ , दद्दा कात कछु न कइये। 'परमा' कात के कब लो चल है , दद्दा कात कछु न कइये। गल्ला = अनाज , खितवा = खेत , कात = कहते हैं , दद्दा = पिता जी , कइये = कहना

आरक्षण की नीति

बीजा तो डंगरन के बये ते, जोन विषैले बौला भये ते, ऐसो नकुअन दम हो गओ है बहुतै बेल बढ़ाई रे।    सवा डेवढ़ी मेनत कर रओ, पउआ भर को फ़ल मिल रओ,  अरी व्यवस्था ऐसी तेने काय धरी निठुराई रे।   एक भेद में भेद डार के, क़ाबलियत पे रेत डार के, ऐसी-वैसी जुगत लगा के चकरी बुरइ चलाई रे।  जिने चाने उने न मिल रओ, सबकी छतियन मूंग दर रओ, आरक्षण की राजनीति ने खोद दई अब खाई रे।   डंगरन = खरबूजा, बौला = बेल, बये = बोए, ते = थे, नकुअन दम होना  = परेशान हो जाना, मेनत = मेहनत, पउआ = एक चौथाई, चाने = चाहिए

अवकाशकाल अब ख़त्म हुआ

आज है वापस जाना मुझको, अवकाशकाल अब ख़त्म हुआ | आकर के मिलने का वह सुख. मानो करुणा में भस्म हुआ | इस दिल ने निज मातृ-भूमि को, कुछ इस तरह विदा दी | आँखो के मोती की माला, माँ के चरणों मे गिरा दी|